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जयललिता का जीवन परिचय (Jayaram Jayalalitha Biography in hindi, Early life, education, family, Political career, Controversies, death, Awards and honours)

Table Of Contents
  1. जयललिता का जीवन परिचय (Jayaram Jayalalitha Biography in hindi, Early life, education, family, Political career, Controversies, death, Awards and honours)
  2. प्रारंभिक जीवन, शिक्षा और परिवार
  3. फ़िल्मी करियर
  4. बाद का करियर
  5. प्रारंभिक राजनीतिक कैरियर
  6. विपक्ष के नेता, 1989
  7. विधानसभा के अंदर झड़प
  8. मुख्यमंत्री के रूप में पहला कार्यकाल, 1991
  9. आरक्षण
  10. शक्ति की हानि (1996)
  11. मुख्यमंत्री के रूप में दूसरा कार्यकाल, 2001
  12. मुख्यमंत्री के रूप में तीसरा कार्यकाल, 2002
  13. 2006 में विपक्ष के नेता
  14. श्रीलंकाई तमिल मुद्दा
  15. मुख्यमंत्री के रूप में चौथा कार्यकाल, 2011
  16. अम्मा ब्रांडेड योजनाएँ
  17. तमिलनाडु जल विवाद पर फैसला
  18. एआईएडीएमके के महासचिव
  19. आय से अधिक संपत्ति मामला (2014)
  20. मुख्यमंत्री के रूप में पांचवां कार्यकाल, 2015
  21. मुख्यमंत्री के रूप में लगातार छठा कार्यकाल
  22. Controversies, (विवादों , व्यक्तित्व पंथ)
  23. 1999 हत्या के प्रयास का मामला
  24. भ्रष्टाचार के मामले , 1996 रंगीन टीवी केस
  25. 1995 पालक पुत्र और विलासितापूर्ण विवाह भ्रष्टाचार
  26. 1998 TANSI भूमि सौदा मामला
  27. आय से अधिक संपत्ति का मामला
  28. 2000 प्लेज़ेंट स्टे होटल मामला
  29. बीमारी, मृत्यु और प्रतिक्रियाएँ
  30. जयललिता का स्मारक
  31. न्यायमूर्ति अरुमुगास्वामी आयोग द्वारा मौत की जांच
  32. लोकप्रिय संस्कृति में
  33. चुनाव लड़े और पदों पर रहे
  34. भारत की संसद में पद
  35. तमिलनाडु विधान सभा में पद
  36. पुरस्कार और सम्मान
  37. कार्य, उपन्यास और श्रृंखला
  38. Books (पुस्तकें)
  39. लघु कथाएँ और स्तम्भ
  40. अन्य हित, देशों का दौरा किया
  41. अवकाश रुचियां
  42. सामान्य प्रश्न

जे. जयललिता, जिन्हें अम्मा (तमिल में अर्थ “माँ”) के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ और अभिनेत्री थीं। उनका जन्म 24 फरवरी, 1948 को मैसूर (अब कर्नाटक राज्य का हिस्सा), भारत में हुआ था और उनका निधन 5 दिसंबर, 2016 को चेन्नई, तमिलनाडु, भारत में हुआ।

जयललिता ने 1960 के दशक में फिल्म उद्योग में अपना करियर शुरू किया और जल्द ही खुद को तमिल फिल्म उद्योग, जिसे कॉलीवुड भी कहा जाता है, में एक अग्रणी अभिनेत्री के रूप में स्थापित कर लिया। उन्होंने तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और हिंदी सहित विभिन्न भाषाओं में 140 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया। जयललिता की ऑन-स्क्रीन उपस्थिति, प्रतिभा और करिश्मा ने उन्हें बड़े पैमाने पर प्रशंसक बना दिया।

1980 के दशक में, जयललिता ने अभिनय से राजनीति में कदम रखा और तमिलनाडु की क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) में शामिल हो गईं। वह जल्द ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में उभरीं और इसकी सबसे प्रमुख नेताओं में से एक बन गईं। 1991 में, वह पहली बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं और कुल छह कार्यकालों तक कई बार मुख्यमंत्री रहीं।

मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, जयललिता ने कई कल्याणकारी योजनाओं और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को लागू किया, जिससे उन्हें एक मजबूत और निर्णायक नेता के रूप में प्रतिष्ठा मिली। उन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा में सुधार, शिक्षा और महिलाओं के सशक्तिकरण जैसी पहलों पर ध्यान केंद्रित किया। जयललिता का व्यक्तित्व भी करिश्माई था, जिसने उनकी राजनीतिक लोकप्रियता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

हालाँकि, उनका राजनीतिक करियर विवादों से रहित नहीं था। उन्हें कानूनी लड़ाई का सामना करना पड़ा और भ्रष्टाचार के आरोप में अस्थायी रूप से सार्वजनिक पद संभालने से अयोग्य घोषित कर दिया गया। इन चुनौतियों के बावजूद, जयललिता ने तमिलनाडु मतदाताओं के एक महत्वपूर्ण वर्ग के बीच अपनी लोकप्रियता बरकरार रखी।

दिसंबर 2016 में जयललिता की मृत्यु के बाद तमिलनाडु में राजनीतिक उथल-पुथल का दौर शुरू हो गया, उनकी पार्टी को आंतरिक विवादों और नेतृत्व परिवर्तन से गुजरना पड़ा। हालाँकि, उनका प्रभाव और विरासत तमिलनाडु के राजनीतिक परिदृश्य को आकार देना जारी रखती है। वह अपने समर्थकों के बीच एक सम्मानित व्यक्ति बनी हुई हैं और उन्हें उनके मजबूत नेतृत्व, कल्याणकारी पहल और तमिल फिल्म उद्योग में उनके योगदान के लिए याद किया जाता है।

प्रारंभिक जीवन, शिक्षा और परिवार

जे. जयललिता, जिनका पूरा नाम जयराम जयललिता था, का जन्म 24 फरवरी, 1948 को भारत के कर्नाटक के वर्तमान मांड्या जिले के एक शहर मेलुकोटे में हुआ था। उनके माता-पिता जयराम और वेदावल्ली थे। उनके पिता न्यायिक सेवाओं में काम करते थे और उनकी माँ एक गृहिणी थीं।

उनके पिता की सेवानिवृत्ति के बाद, परिवार तमिलनाडु में चेन्नई (तब मद्रास के नाम से जाना जाता था) चला गया, जहाँ जयललिता ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। वह शिक्षा में उत्कृष्ट थी और एक मेधावी छात्रा थी। वह चेन्नई के स्टेला मैरिस कॉलेज में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए चली गईं, जहां उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में कला स्नातक की डिग्री प्राप्त की।

अपने कॉलेज के दिनों में, जयललिता ने कला में गहरी रुचि दिखाई और थिएटर और सांस्कृतिक गतिविधियों में शामिल हो गईं। उनकी प्रतिभा और सुंदरता ने फिल्म उद्योग का ध्यान खींचा और उन्हें अभिनय के अवसर प्रदान किये गये। जयललिता ने 1965 में तमिल फिल्म “वेन्निरा अदाई” से अभिनय की शुरुआत की और जल्द ही खुद को उद्योग में एक अग्रणी अभिनेत्री के रूप में स्थापित कर लिया।

परिवार के संदर्भ में, जयललिता ने कभी शादी नहीं की थी और उनकी कोई संतान नहीं थी। उन्होंने निजी जीवन को निजी बनाए रखा और अपने रिश्तों के बारे में जानकारी को लोगों की नजरों से दूर रखा। अपने पूरे राजनीतिक जीवन में, उन्होंने खुद को एक समर्पित लोक सेवक के रूप में प्रस्तुत किया और मुख्य रूप से अपनी राजनीतिक और प्रशासनिक जिम्मेदारियों पर ध्यान केंद्रित किया।

यह ध्यान देने योग्य बात है कि जयललिता का अपनी माँ के साथ रिश्ता विशेष रूप से घनिष्ठ था, और उनकी माँ के प्रभाव और मार्गदर्शन ने उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1971 में अपनी माँ के निधन से जयललिता पर गहरा प्रभाव पड़ा और वह जीवन भर उनकी स्मृति में समर्पित रहीं।

फ़िल्मी करियर

राजनीति में कदम रखने से पहले जे. जयललिता का फिल्मी करियर सफल रहा था। उन्होंने 1960 के दशक के मध्य में अपनी अभिनय यात्रा शुरू की और तमिल फिल्म उद्योग, जिसे आमतौर पर कॉलीवुड के नाम से जाना जाता है, में सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली अभिनेत्रियों में से एक बन गईं।

जयललिता ने 1965 में तमिल फिल्म “वेन्निरा अदाई” से अभिनय की शुरुआत की। उनकी प्रतिभा और स्क्रीन उपस्थिति ने तुरंत ध्यान आकर्षित किया, और उन्हें अपने प्रदर्शन के लिए आलोचकों की प्रशंसा मिली। उन्होंने तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और हिंदी सहित विभिन्न भाषाओं की कई फिल्मों में अभिनय किया।

अपने फिल्मी करियर के दौरान जयललिता ने अपने समय के कई प्रमुख अभिनेताओं और निर्देशकों के साथ काम किया। उनकी कुछ उल्लेखनीय फिल्मों में “अयिराथिल ओरुवन,” “एंगिरुंधो वंधल,” “सूर्यगांधी,” “गंगा गौरी,” “थिरुमंगल्यम,” और “पट्टिकाडा पट्टानामा” शामिल हैं। उन्होंने एक अभिनेत्री के रूप में अपनी बहुमुखी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए विविध किरदार निभाए।

जयललिता की ऑन-स्क्रीन उपस्थिति, सुंदरता और अभिनय कौशल ने दर्शकों के बीच उनकी व्यापक लोकप्रियता में योगदान दिया। उन्होंने अपने अभिनय के लिए कई पुरस्कार जीते, जिनमें तमिलनाडु राज्य फिल्म पुरस्कार और दक्षिण फिल्मफेयर पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार शामिल हैं।

उनका फिल्मी करियर एक दशक से अधिक समय तक चला और 1980 के दशक में पूर्णकालिक राजनीति में आने से पहले उन्होंने 140 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया। हालाँकि उन्होंने फिल्म उद्योग छोड़ दिया, लेकिन एक अभिनेत्री के रूप में जयललिता की विरासत उनके पूरे राजनीतिक करियर और उसके बाद भी उनके प्रशंसकों और अनुयायियों के बीच गूंजती रही। फिल्म उद्योग में उनका योगदान और एक अभिनेत्री के रूप में उनकी प्रतिष्ठित स्थिति उनकी स्थायी विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनी हुई है।

बाद का करियर

जे. जयललिता ने अपने सफल फिल्मी करियर से आगे बढ़ने के बाद, राजनीति में पूर्णकालिक करियर शुरू किया। वह तमिलनाडु की एक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी, ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) में शामिल हो गईं और तेजी से आगे बढ़ती हुई इसके सबसे प्रमुख नेताओं में से एक बन गईं।

1982 में, जयललिता तमिलनाडु विधान सभा के लिए चुनी गईं, जिससे उनकी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत हुई। उन्होंने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में कई निर्वाचन क्षेत्रों से विधान सभा सदस्य (एमएलए) के रूप में कार्य किया।

जयललिता के राजनीतिक उत्थान ने गति पकड़ी और उन्होंने अन्नाद्रमुक के भीतर विभिन्न पदों पर कार्य किया, जिसमें पार्टी के प्रचार सचिव के रूप में नियुक्त किया जाना भी शामिल था। 1984 में, वह तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व करते हुए भारतीय संसद के ऊपरी सदन, राज्य सभा के लिए चुनी गईं।

1989 में, जयललिता एआईएडीएमके की महासचिव बनीं, जिससे पार्टी के नेता के रूप में उनकी स्थिति मजबूत हो गई। उनके करिश्मे, नेतृत्व गुणों और जनता से जुड़ने की क्षमता ने उन्हें तमिलनाडु के लोगों के बीच महत्वपूर्ण लोकप्रियता और लोकप्रियता हासिल करने में मदद की।

जयललिता कई बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं। उन्होंने पहली बार 1991 में एआईएडीएमके के संस्थापक एम.जी.रामचंद्रन की हत्या के बाद यह पद संभाला था। वह 1991 से 1996, 2001 से 2006, 2011 से 2014 और 2015 से 2016 तक मुख्यमंत्री रहीं। कुल मिलाकर, उन्होंने छह बार मुख्यमंत्री का पद संभाला, जिससे वह सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली राजनीतिक बन गईं। तमिलनाडु के इतिहास के आंकड़े।

मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, जयललिता ने विभिन्न पहलों पर ध्यान केंद्रित किया, विशेष रूप से कल्याण और विकास के क्षेत्रों में। उन्होंने समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों को लक्षित करते हुए कई कल्याणकारी योजनाएं लागू कीं, जिनमें सब्सिडी वाले भोजन का वितरण, स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम और शैक्षिक पहल शामिल हैं। उनकी सरकार ने राजमार्गों के निर्माण और सार्वजनिक परिवहन के विस्तार जैसी महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाएं भी शुरू कीं।

हालाँकि, उनका राजनीतिक करियर विवादों से रहित नहीं था। जयललिता को कानूनी लड़ाई का सामना करना पड़ा और भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण उन्हें अस्थायी रूप से सार्वजनिक पद संभालने से अयोग्य घोषित कर दिया गया। फिर भी, उन्होंने अपनी लोकप्रियता और तमिलनाडु मतदाताओं के एक महत्वपूर्ण वर्ग का समर्थन बरकरार रखा।

5 दिसंबर 2016 को जयललिता के आकस्मिक निधन से तमिलनाडु की राजनीति में एक युग का अंत हो गया। उनकी मृत्यु ने अन्नाद्रमुक में एक शून्य पैदा कर दिया और राज्य में राजनीतिक अस्थिरता का दौर शुरू हो गया। उनके निधन के बावजूद, उनका प्रभाव और विरासत तमिलनाडु के राजनीतिक परिदृश्य को आकार दे रही है, और वह अपने समर्थकों के बीच एक सम्मानित व्यक्ति बनी हुई हैं।

प्रारंभिक राजनीतिक कैरियर

जे. जयललिता का राजनीतिक करियर 1980 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ जब वह भारत के तमिलनाडु राज्य की एक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) में शामिल हुईं। एक प्रसिद्ध अभिनेत्री के रूप में उनकी लोकप्रियता और उनके सशक्त वक्तृत्व कौशल के कारण, वह जल्दी ही पार्टी के रैंकों में उभर गईं।

1982 में, जयललिता ने अपना पहला राजनीतिक चुनाव लड़ा और जीता और बोडिनायक्कनुर निर्वाचन क्षेत्र से तमिलनाडु विधान सभा में एक सीट हासिल की। इससे उनका राजनीति में औपचारिक प्रवेश हुआ। उन्होंने अपनी नेतृत्व क्षमता और सार्वजनिक सेवा के प्रति समर्पण का प्रदर्शन किया और जनता के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ती रही।

जयललिता की राजनीतिक कुशलता और रणनीतिक योजना ने जल्द ही उन्हें अन्नाद्रमुक नेतृत्व का विश्वास और समर्थन दिला दिया। 1983 में उन्हें पार्टी का प्रचार सचिव नियुक्त किया गया। इस पद ने उन्हें पार्टी की गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल होने, पार्टी की छवि को आकार देने और इसकी नीतियों और विचारधारा को जनता तक पहुंचाने की अनुमति दी।

1984 में, जयललिता के राजनीतिक करियर ने एक और महत्वपूर्ण कदम आगे बढ़ाया जब वह तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व करते हुए भारतीय संसद के ऊपरी सदन राज्य सभा के लिए चुनी गईं। राज्यसभा में उनके कार्यकाल ने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में बहुमूल्य अनुभव प्रदान किया और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर तमिलनाडु के हितों की वकालत करने की अनुमति दी।

अपने शुरुआती राजनीतिक करियर के दौरान, जयललिता ने खुद को एआईएडीएमके के संस्थापक और श्रद्धेय नेता, एम.जी.रामचंद्रन, जिन्हें एमजीआर के नाम से जाना जाता है, के साथ निकटता से जोड़ा। उन्हें उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी और आश्रित के रूप में देखा जाता था और उनके समर्थन ने उनके राजनीतिक प्रक्षेप पथ को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1987 में एमजीआर की मृत्यु के बाद, अन्नाद्रमुक को आंतरिक सत्ता संघर्ष का सामना करना पड़ा और वह दो गुटों में विभाजित हो गई। अपने मजबूत नेतृत्व और लोकप्रियता के दम पर जयललिता एक धड़े की नेता बनकर उभरीं। उन्होंने सफलतापूर्वक अपनी स्थिति मजबूत की और अंततः पार्टी पर अपना नियंत्रण मजबूत करते हुए एआईएडीएमके की महासचिव बनीं।

जयललिता के शुरुआती राजनीतिक करियर की पहचान उनकी जनता से जुड़ने की क्षमता, उनके करिश्माई व्यक्तित्व और उनके मजबूत नेतृत्व गुणों से थी। एक अभिनेत्री के रूप में उनकी पिछली लोकप्रियता के साथ मिलकर इन विशेषताओं ने उन्हें तमिलनाडु में एक मजबूत राजनीतिक आधार बनाने में मदद की।

बाद के वर्षों में, जयललिता ने राज्य की राजनीति और शासन पर स्थायी प्रभाव छोड़ते हुए, तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के रूप में कई कार्यकाल तक काम किया। उनके शुरुआती राजनीतिक अनुभवों ने उनकी बाद की उपलब्धियों की नींव रखी और तमिलनाडु के राजनीतिक परिदृश्य में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में उनकी स्थिति को मजबूत किया।

विपक्ष के नेता, 1989

जयललिता 1989 में तमिलनाडु विधानसभा में विपक्ष की नेता बनीं, जब उनकी पार्टी, ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) ने विधानसभा चुनावों में 27 सीटें जीतीं। वह तमिलनाडु में यह पद संभालने वाली पहली महिला थीं।

राजनीति में आने से पहले जयललिता एक लोकप्रिय अभिनेत्री थीं। वह अपने ग्लैमरस लुक और जोशीले भाषणों के लिए जानी जाती थीं। वह एक कुशल राजनीतिज्ञ भी थीं और वह जल्द ही अन्नाद्रमुक के खेमे में पहुंच गईं।

विपक्ष की नेता के रूप में, जयललिता डीएमके सरकार की मुखर आलोचक थीं, जिसका नेतृत्व एम. करुणानिधि ने किया था। उन्होंने सरकार पर भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन का आरोप लगाया. उन्होंने सरकार के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शनों का भी नेतृत्व किया।

जयललिता 1989 में तमिलनाडु विधानसभा में विपक्ष की नेता बनीं, जब उनकी पार्टी, ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) ने विधानसभा चुनावों में 27 सीटें जीतीं। वह तमिलनाडु में यह पद संभालने वाली पहली महिला थीं।

राजनीति में आने से पहले जयललिता एक लोकप्रिय अभिनेत्री थीं। वह अपने ग्लैमरस लुक और जोशीले भाषणों के लिए जानी जाती थीं। वह एक कुशल राजनीतिज्ञ भी थीं और वह जल्द ही अन्नाद्रमुक के खेमे में पहुंच गईं।

विपक्ष की नेता के रूप में, जयललिता डीएमके सरकार की मुखर आलोचक थीं, जिसका नेतृत्व एम. करुणानिधि ने किया था। उन्होंने सरकार पर भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन का आरोप लगाया. उन्होंने सरकार के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शनों का भी नेतृत्व किया।

विधानसभा के अंदर झड़प

यह घटना 25 मार्च 1989 को घटी, और इसे “1989 तमिलनाडु विधानसभा हिंसा” या “1989 विधानसभा हंगामा” के रूप में जाना जाता है।

इस घटना के दौरान विधानसभा में विपक्ष की नेता के तौर पर काम कर रहीं जयललिता और सत्ता पक्ष के सदस्यों के बीच तीखी नोकझोंक हुई. यह संघर्ष सत्तारूढ़ दल द्वारा पेश किए गए एक प्रस्ताव पर बहस के दौरान भड़का। जयललिता के नेतृत्व में विपक्षी सदस्यों ने प्रस्ताव पर आपत्ति जताई, जिसके कारण सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्यों के बीच मौखिक और शारीरिक झड़प हुई।

स्थिति तेजी से बिगड़ गई, विधायकों के बीच मारपीट हो गई और फर्नीचर को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा। हिंसा के कारण विधानसभा हॉल के अंदर अराजकता और अव्यवस्था फैल गई, हाथापाई के दौरान कई विधायक घायल हो गए। आख़िरकार स्थिति पर काबू पाया गया और विधानसभा की कार्यवाही स्थगित कर दी गई।

1989 की विधानसभा हिंसा ने मीडिया का महत्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया और यह तमिलनाडु में तीव्र राजनीतिक तनाव का क्षण था। इस घटना ने सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच पहले से मौजूद दुश्मनी को और बढ़ा दिया है. इसने दोनों गुटों के बीच गहरे राजनीतिक विभाजन और तीखी प्रतिद्वंद्विता को उजागर किया।

यह ध्यान देने योग्य है कि विधान सभाओं के अंदर हिंसा और झड़प की ऐसी घटनाएं दुर्लभ हैं और निर्वाचित प्रतिनिधियों के सामान्य आचरण को प्रतिबिंबित नहीं करती हैं। 1989 की विधानसभा हिंसा तमिलनाडु की विधायी कार्यवाही के इतिहास में एक असाधारण और दुर्भाग्यपूर्ण घटना के रूप में सामने आती है।

मुख्यमंत्री के रूप में पहला कार्यकाल, 1991

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के रूप में जे. जयललिता का पहला कार्यकाल 1991 में शुरू हुआ। उस वर्ष हुए राज्य विधानसभा चुनाव उनके राजनीतिक करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुए। उनकी पार्टी, ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ गठबंधन बनाया और राज्य विधानसभा में बहुमत हासिल किया।

जयललिता ने 24 जून 1991 को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण किया। 1991 से 1996 तक मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण विकास और नीतिगत पहल देखी गईं।

अपने पहले कार्यकाल के दौरान, जयललिता ने शासन और कल्याण के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने महिलाओं और बच्चों पर विशेष जोर देने के साथ समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों को लक्षित करते हुए कई कल्याणकारी योजनाएं लागू कीं। उनके पहले कार्यकाल के दौरान शुरू की गई कुछ उल्लेखनीय पहलों में शामिल हैं:

क्रैडल बेबी योजना: कन्या भ्रूण हत्या से निपटने और परित्यक्त कन्या शिशुओं को बेहतर भविष्य प्रदान करने के लिए, जयललिता ने क्रैडल बेबी योजना शुरू की। इसने माता-पिता को अज्ञात रूप से अवांछित नवजात लड़कियों को विशिष्ट स्थानों पर रखे पालने में छोड़ने की अनुमति दी। फिर इन शिशुओं की देखभाल सरकार द्वारा की गई और उन्हें गोद लेने के अवसर दिए गए।

तमिलनाडु एकीकृत पोषण परियोजना: इस परियोजना के तहत, जयललिता का लक्ष्य कुपोषण को संबोधित करना और महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार करना था। यह परियोजना गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और बच्चों को पौष्टिक भोजन, स्वास्थ्य पूरक और चिकित्सा देखभाल प्रदान करने पर केंद्रित है।

दोपहर भोजन योजना: जयललिता के कार्यकाल के दौरान शुरू की गई दोपहर भोजन योजना का उद्देश्य स्कूली बच्चों को मुफ्त पौष्टिक भोजन प्रदान करना, उपस्थिति को प्रोत्साहित करना और उनके समग्र स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार करना था।

वर्षा जल संचयन: जल संरक्षण और टिकाऊ संसाधन प्रबंधन के महत्व को पहचानते हुए, जयललिता ने तमिलनाडु में सभी इमारतों के लिए अनिवार्य वर्षा जल संचयन प्रणाली लागू की।

कल्याणकारी पहलों के अलावा, जयललिता ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान बुनियादी ढांचे के विकास को भी प्राथमिकता दी। उनकी सरकार ने राज्य भर में सड़कों, परिवहन और शहरी बुनियादी ढांचे में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया। राजधानी शहर में जल आपूर्ति और स्वच्छता सुविधाओं को बढ़ाने के लिए इस अवधि के दौरान चेन्नई मेट्रो जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड की स्थापना की गई थी।

मुख्यमंत्री के रूप में जयललिता के पहले कार्यकाल में उनके प्रशासनिक कौशल, दृढ़ संकल्प और कल्याण और विकास पर ध्यान केंद्रित हुआ। उनकी पहल और नीतियों से उन्हें प्रशंसा और आलोचना दोनों मिली, लेकिन उन्होंने निस्संदेह इस अवधि के दौरान तमिलनाडु के शासन पर महत्वपूर्ण प्रभाव छोड़ा।

आरक्षण

जे. जयललिता ने तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, राज्य में सामाजिक समानता को बढ़ावा देने और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के उत्थान के लिए विभिन्न आरक्षण नीतियों को लागू किया। भारत में आरक्षण का उद्देश्य आम तौर पर अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) जैसे ऐतिहासिक रूप से वंचित समूहों को अवसर और प्रतिनिधित्व प्रदान करना है।

जयललिता के नेतृत्व में, तमिलनाडु सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों, सरकारी नौकरियों और चुनावी प्रतिनिधित्व में आरक्षण नीतियों को लागू किया। उनके कार्यकाल के दौरान आरक्षण से संबंधित कुछ प्रमुख पहल इस प्रकार हैं:

शैक्षणिक आरक्षण: जयललिता की सरकार ने हाशिए पर रहने वाले समुदायों को उच्च शिक्षा तक पहुंच प्रदान करने के लिए शैक्षणिक संस्थानों में महत्वपूर्ण आरक्षण की शुरुआत की। एससी और एसटी के लिए आरक्षण कोटा बढ़ाया गया और ओबीसी के लिए अलग आरक्षण शुरू किया गया।

सरकारी नौकरियों में आरक्षण: जयललिता की सरकार ने एससी, एसटी और ओबीसी के लिए प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करते हुए सरकारी नौकरियों में आरक्षण लागू किया। इस नीति का उद्देश्य इन समुदायों द्वारा झेले गए ऐतिहासिक नुकसानों को दूर करना और सार्वजनिक रोजगार में उनकी भागीदारी को बढ़ाना है।

महिला आरक्षण: जयललिता महिला अधिकारों और सशक्तिकरण की प्रबल समर्थक थीं। उनकी सरकार ने महिलाओं को उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व और निर्णय लेने की शक्ति को बढ़ाने के लिए, स्थानीय निकायों, जैसे कि पंचायतों और नगर पालिकाओं में 33% आरक्षण प्रदान करने के लिए कानून पारित किया।

आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षण: केंद्र सरकार की नीति के अनुरूप, जयललिता की सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण लागू किया। इस आरक्षण का उद्देश्य आर्थिक रूप से वंचित व्यक्तियों के लिए अवसर प्रदान करना था जो पारंपरिक आरक्षण श्रेणियों के अंतर्गत नहीं आते थे।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आरक्षण नीतियां बहस और चर्चा का विषय रही हैं, उनकी प्रभावशीलता और प्रभाव पर अलग-अलग दृष्टिकोण हैं। जबकि आरक्षण हाशिए पर रहने वाले समुदायों को अवसर प्रदान करने में सहायक रहा है, कुछ लोगों का तर्क है कि इससे नाराजगी भी हो सकती है और योग्यता-आधारित चयन में बाधा आ सकती है। हालाँकि, भारत में कई अन्य लोगों की तरह, जयललिता की सरकार ने ऐतिहासिक असमानताओं को दूर करने और समावेशिता को बढ़ावा देने के लिए अपने व्यापक सामाजिक न्याय एजेंडे के हिस्से के रूप में आरक्षण नीतियों को लागू किया।

शक्ति की हानि (1996)

1996 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में, जे. जयललिता की पार्टी, ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) को महत्वपूर्ण हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप उनकी सरकार को सत्ता से हाथ धोना पड़ा। एआईएडीएमके गठबंधन राज्य विधानसभा में बहुमत हासिल करने में असमर्थ रहा और प्रतिद्वंद्वी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के नेतृत्व वाला मोर्चा विजयी हुआ।

1996 में सत्ता का खोना जयललिता के राजनीतिक करियर के लिए एक झटका था। मुख्यमंत्री के रूप में उनके पहले कार्यकाल के बाद अन्नाद्रमुक को चुनावी हार का सामना करना पड़ा, जिसके कारण तमिलनाडु के राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव आया। एम. करुणानिधि के नेतृत्व में द्रमुक सत्ता में आई और जयललिता ने राज्य विधानसभा में विपक्ष की नेता की भूमिका निभाई।

विपक्ष की नेता के रूप में, जयललिता ने सत्तारूढ़ दल को जवाबदेह बनाने और उनकी नीतियों और निर्णयों की जांच करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह तमिलनाडु की राजनीति में एक प्रमुख हस्ती बनी रहीं, उन्होंने अपने पद का उपयोग अपनी चिंताओं को उठाने, महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने और सत्तारूढ़ सरकार को एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रदान करने के लिए किया।

विपक्ष की नेता के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, जयललिता ने अन्नाद्रमुक के पुनर्निर्माण और मजबूती की दिशा में सक्रिय रूप से काम किया। उन्होंने भविष्य में राजनीतिक शक्ति हासिल करने के लिए पार्टी को पुनर्गठित करने, समर्थन जुटाने और जनता के साथ फिर से जुड़ने पर ध्यान केंद्रित किया।

अंततः, विपक्ष की नेता के रूप में जयललिता के कार्यकाल ने उन्हें फिर से संगठित होने और वापसी के लिए रणनीति बनाने का अवसर प्रदान किया। उनका दृढ़ संकल्प, लचीलापन और राजनीतिक कौशल बाद के वर्षों में महत्वपूर्ण साबित होगा क्योंकि उन्होंने तमिलनाडु में सत्ता में सफल वापसी की।

मुख्यमंत्री के रूप में दूसरा कार्यकाल, 2001

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के रूप में जे. जयललिता का दूसरा कार्यकाल 2001 में शुरू हुआ। उस वर्ष हुए राज्य विधानसभा चुनाव उनके राजनीतिक करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुए, क्योंकि उनकी पार्टी, अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) विजयी हुई और राज्य विधानसभा में बहुमत हासिल कर लिया.

जयललिता ने 14 मई 2001 को दूसरी बार मुख्यमंत्री का पद संभाला। मुख्यमंत्री के रूप में उनके दूसरे कार्यकाल में तमिलनाडु के लोगों की बेहतरी के उद्देश्य से विभिन्न नीतिगत पहल, कल्याणकारी योजनाएं और बुनियादी ढांचा विकास परियोजनाएं देखी गईं।

इस कार्यकाल के दौरान, जयललिता ने समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों, महिलाओं और बच्चों को लक्षित करने वाले कल्याण कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखा। उनके दूसरे कार्यकाल के दौरान शुरू की गई या विस्तारित की गई कुछ प्रमुख पहलों में शामिल हैं:

"अम्मा" ब्रांड कल्याण योजनाएं: जयललिता ने अपने लोकप्रिय उपनाम के नाम पर "अम्मा" ब्रांड के तहत कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं। इन योजनाओं में अम्मा कैंटीन (कम लागत वाले भोजनालय), अम्मा वाटर, अम्मा उनावगम (सब्सिडी वाला भोजन), और अम्मा फार्मेसी (रियायती दवाएं) शामिल हैं। इन पहलों का उद्देश्य वंचितों को किफायती भोजन, स्वच्छ पेयजल और आवश्यक दवाओं तक पहुंच प्रदान करना है।

मध्याह्न भोजन योजना: जयललिता ने मध्याह्न भोजन योजना का विस्तार किया, जो स्कूली बच्चों को पौष्टिक भोजन प्रदान करती है। इस योजना का विस्तार अधिक स्कूलों को कवर करने, बेहतर पोषण सुनिश्चित करने और उपस्थिति को प्रोत्साहित करने के लिए किया गया था।

तमिलनाडु हाउसिंग बोर्ड योजनाएं: सरकार ने समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को किफायती आवास प्रदान करने के लिए विभिन्न आवास योजनाएं लागू कीं। आवास के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए "थाई थिरुनल" आवास योजना और "सर्व सिद्धि" आवास योजना जैसी पहल शुरू की गईं।

बुनियादी ढांचे का विकास: जयललिता की सरकार ने राज्य भर में बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित किया। परिवहन और कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए सड़कों, पुलों, फ्लाईओवर और चेन्नई मेट्रो रेल के निर्माण और विस्तार सहित कई परियोजनाएं शुरू की गईं।

औद्योगिक और निवेश नीतियां: सरकार ने तमिलनाडु में निवेश आकर्षित करने और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए नीतियां पेश कीं। व्यवसाय के लिए अनुकूल माहौल बनाने, रोजगार के अवसर पैदा करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के प्रयास किए गए।

मुख्यमंत्री के रूप में जयललिता के दूसरे कार्यकाल में उनका ध्यान कल्याणकारी पहलों, बुनियादी ढांचे के विकास और आर्थिक विकास पर केंद्रित था। उनकी सरकार की नीतियों और योजनाओं का उद्देश्य समाज के हाशिए पर मौजूद वर्गों का उत्थान करना और तमिलनाडु के लोगों की समग्र भलाई में सुधार करना है। उनके दूसरे कार्यकाल ने राज्य में उनके राजनीतिक कद और प्रभाव को और मजबूत कर दिया।

मुख्यमंत्री के रूप में तीसरा कार्यकाल, 2002

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के रूप में जे.जयललिता का तीसरा कार्यकाल 2002 में शुरू हुआ। उन्होंने 2 मार्च 2002 को तीसरी बार मुख्यमंत्री का पद संभाला।

अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान, जयललिता ने तमिलनाडु के लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए शासन, कल्याण पहल और बुनियादी ढांचे के विकास के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखा। मुख्यमंत्री के रूप में उनके तीसरे कार्यकाल की कुछ प्रमुख झलकियाँ इस प्रकार हैं:

सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार: जयललिता की सरकार ने समाज के आर्थिक रूप से वंचित वर्गों को आवश्यक वस्तुओं के कुशल वितरण को सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में सुधार लागू किए। सरकार ने पीडीएस को सुव्यवस्थित करने और कदाचार पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाए, यह सुनिश्चित किया कि सब्सिडी वाले खाद्यान्न और अन्य आवश्यक वस्तुएं इच्छित लाभार्थियों तक पहुंचें।

महिला सशक्तिकरण पहल: महिला कल्याण पर ध्यान केंद्रित करने के लिए जानी जाने वाली जयललिता ने अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई पहल कीं। उन्होंने "क्रैडल बेबी योजना" शुरू की, जिसका उद्देश्य कन्या भ्रूण हत्या को रोकना और परित्यक्त शिशुओं को गोद लेने को बढ़ावा देना था। इसके अतिरिक्त, उन्होंने महिलाओं की उद्यमिता और आर्थिक सशक्तिकरण का समर्थन करने के लिए "तमिलनाडु महिला विकास निगम" लागू किया।

बुनियादी ढाँचा विकास: जयललिता की सरकार ने बुनियादी ढाँचे के विकास को प्राथमिकता देना जारी रखा। राजमार्गों, फ्लाईओवरों के निर्माण और विस्तार और बंदरगाहों के आधुनिकीकरण सहित महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शुरू की गईं। सरकार ने बिजली आपूर्ति में सुधार और जल संसाधन प्रबंधन को बढ़ाने पर भी ध्यान केंद्रित किया।

शैक्षिक सुधार: जयललिता की सरकार ने शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने और छात्रों तक पहुंच में सुधार के लिए विभिन्न उपाय लागू किए। इसमें "कलैगनार" शैक्षिक ऋण योजना की शुरूआत शामिल थी, जिसका उद्देश्य उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करना था।

औद्योगिक और निवेश प्रोत्साहन: तमिलनाडु में निवेश आकर्षित करने और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के प्रयास किए गए। सरकार ने औद्योगिक विकास को सुविधाजनक बनाने, नियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और अनुकूल कारोबारी माहौल बनाने के लिए नीतियां पेश कीं।

मुख्यमंत्री के रूप में जयललिता के तीसरे कार्यकाल ने कल्याणकारी पहलों, बुनियादी ढांचे के विकास और आर्थिक विकास के प्रति उनकी निरंतर प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया। उनकी सरकार की नीतियों का उद्देश्य समाज के हाशिए पर मौजूद वर्गों का उत्थान करना, महिलाओं को सशक्त बनाना और तमिलनाडु के लोगों की समग्र भलाई और समृद्धि में सुधार करना है।

2006 में विपक्ष के नेता

2006 में विपक्ष की नेता के रूप में जयललिता के बारे में कुछ जानकारी यहां दी गई है:

29 मई 2006 को उनकी पार्टी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) द्वारा विधानसभा चुनावों में 63 सीटें जीतने के बाद वह तमिलनाडु विधानसभा में विपक्ष की नेता बनीं।

वह विजयलक्ष्मी नटराजन के बाद तमिलनाडु में यह पद संभालने वाली दूसरी महिला थीं।
विपक्ष की नेता के रूप में, जयललिता डीएमके सरकार की मुखर आलोचक थीं, जिसका नेतृत्व एम. करुणानिधि ने किया था। उन्होंने सरकार पर भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन का आरोप लगाया. उन्होंने सरकार के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शनों का भी नेतृत्व किया।
2011 में, जयललिता ने विधानसभा चुनावों में अन्नाद्रमुक को जीत दिलाई। वह चौथी बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं।

श्रीलंकाई तमिल मुद्दा

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहने के दौरान जे. जयललिता ने श्रीलंकाई तमिल मुद्दे में गहरी दिलचस्पी दिखाई थी। श्रीलंकाई तमिल मुद्दा लंबे समय से चले आ रहे जातीय संघर्ष और श्रीलंका में, विशेषकर उत्तरी और पूर्वी प्रांतों में तमिल अल्पसंख्यकों की शिकायतों को संदर्भित करता है।

तमिल मूल की होने और तमिलनाडु राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाली जयललिता ने श्रीलंकाई तमिल समुदाय के साथ सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध साझा किए। उन्होंने उनके कल्याण और अधिकारों के लिए चिंता व्यक्त की और उनके हितों की वकालत की। श्रीलंकाई तमिल मुद्दे पर उनके रुख को संक्षेप में इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है:

तमिल शरणार्थियों के लिए समर्थन: जयललिता ने श्रीलंका में गृहयुद्ध से बचने के लिए भारत में शरण लेने वाले तमिल शरणार्थियों की सुरक्षा और मानवीय व्यवहार का आह्वान किया। उन्होंने केंद्र सरकार से इन शरणार्थियों को आवश्यक सहायता प्रदान करने का आग्रह किया और कई अवसरों पर उनकी दुर्दशा को उठाया।

स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय जाँच की माँग: जयललिता ने श्रीलंकाई गृहयुद्ध के दौरान हुए कथित युद्ध अपराधों और मानवाधिकारों के उल्लंघन की स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय जाँच की माँग की। उन्होंने अत्याचारों के लिए जिम्मेदार लोगों के लिए जवाबदेही की मांग की।

आर्थिक प्रतिबंध: तमिल अल्पसंख्यकों की शिकायतों को दूर करने और उनके अधिकारों और सम्मान को सुनिश्चित करने के लिए सरकार पर दबाव बनाने के लिए जयललिता ने श्रीलंका के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंधों का आह्वान किया।

यूएनएचआरसी प्रस्तावों पर भारत का रुख: जयललिता ने भारत सरकार से संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) के प्रस्तावों के समर्थन में एक मजबूत रुख अपनाने का आग्रह किया, जिसमें श्रीलंका में जवाबदेही और न्याय की मांग की गई है।

सुलह और हस्तांतरण: जयललिता ने श्रीलंका में तमिल अल्पसंख्यकों की राजनीतिक और आर्थिक शिकायतों को दूर करने के लिए वास्तविक सुलह प्रक्रिया और शक्तियों के सार्थक हस्तांतरण के महत्व पर जोर दिया।

श्रीलंकाई तमिल मुद्दे की जयललिता की वकालत को तमिलनाडु में उनके राजनीतिक आधार से समर्थन मिला। इस मामले पर उनके दृढ़ रुख ने श्रीलंकाई तमिल समुदाय की चिंताओं की ओर ध्यान आकर्षित किया और संघर्ष के सुलह और समाधान के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय मंच पर चर्चा में योगदान दिया।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि श्रीलंकाई तमिल मुद्दे में जयललिता की भागीदारी मुख्य रूप से तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के रूप में थी, और इस मामले पर उनका प्रभाव श्रीलंका के साथ भारत के राजनयिक संबंधों और तमिल शरणार्थियों के कल्याण की चिंताओं के संदर्भ में था।

मुख्यमंत्री के रूप में चौथा कार्यकाल, 2011

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के रूप में जे. जयललिता का चौथा कार्यकाल 2011 में शुरू हुआ। अप्रैल-मई 2011 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में, उनकी पार्टी, ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) ने सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) पार्टी को हराकर भारी जीत हासिल की।

जयललिता ने 16 मई, 2011 को चौथी बार मुख्यमंत्री का पद संभाला। उनके चौथे कार्यकाल ने उनके और अन्नाद्रमुक के लिए एक महत्वपूर्ण वापसी की, क्योंकि वे पांच साल के अंतराल के बाद सत्ता में लौटे।

मुख्यमंत्री के रूप में अपने चौथे कार्यकाल के दौरान, जयललिता ने तमिलनाडु के लोगों के कल्याण और विकास के उद्देश्य से कई पहल और नीतिगत उपायों पर ध्यान केंद्रित किया। उनके चौथे कार्यकाल की कुछ प्रमुख झलकियाँ इस प्रकार हैं:

कल्याणकारी योजनाएँ: जयललिता ने अपने लोकप्रिय उपनाम "अम्मा" ब्रांड के तहत कई कल्याणकारी योजनाएँ शुरू कीं। इन पहलों में अम्मा उनावगम (कम लागत वाला भोजन), अम्मा कैंटीन, अम्मा वॉटर, अम्मा फार्मेसीज़ और अम्मा बेबी केयर किट योजना शामिल हैं। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य किफायती भोजन, स्वच्छ पेयजल, दवाओं तक पहुंच और नई माताओं और शिशुओं के लिए सहायता प्रदान करना है।

मुफ्त लैपटॉप योजना: सरकार ने सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रों को मुफ्त लैपटॉप प्रदान करने के उद्देश्य से "मुफ्त लैपटॉप योजना" लागू की। इस योजना का उद्देश्य डिजिटल साक्षरता को बढ़ाना और छात्रों को शैक्षिक संसाधन प्रदान करना है।

कौशल विकास और रोजगार कार्यक्रम: जयललिता की सरकार ने कौशल विकास पहल और रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित किया। युवाओं के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए "अम्मा कॉल सेंटर" और "अम्मा कौशल प्रशिक्षण केंद्र" जैसे कार्यक्रम शुरू किए गए।

बुनियादी ढांचे का विकास: सरकार ने जयललिता के चौथे कार्यकाल के दौरान बुनियादी ढांचे के विकास पर अपना जोर जारी रखा। कनेक्टिविटी बढ़ाने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए सड़कों के विस्तार, सार्वजनिक परिवहन में सुधार और औद्योगिक पार्कों की स्थापना सहित कई परियोजनाएं शुरू की गईं।

महिला सशक्तिकरण: जयललिता अपने चौथे कार्यकाल के दौरान महिला सशक्तिकरण के लिए प्रतिबद्ध रहीं। उन्होंने महिला उद्यमियों को समर्थन देने, महिला स्वयं सहायता समूहों को वित्तीय सहायता प्रदान करने और महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने के लिए विभिन्न योजनाओं और पहलों की घोषणा की।

मुख्यमंत्री के रूप में जयललिता के चौथे कार्यकाल ने कल्याणकारी पहलों, बुनियादी ढांचे के विकास और आर्थिक विकास पर उनके ध्यान को प्रदर्शित किया। उनकी सरकार की नीतियों का उद्देश्य समाज के हाशिये पर मौजूद वर्गों का उत्थान करना, जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना और तमिलनाडु में समावेशी विकास को बढ़ावा देना है।

अम्मा ब्रांडेड योजनाएँ

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के रूप में जे. जयललिता के कार्यकाल के दौरान, उन्होंने अपने लोकप्रिय उपनाम के नाम पर “अम्मा” ब्रांड के तहत कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं। इन पहलों का उद्देश्य तमिलनाडु के लोगों को सस्ती और सुलभ सेवाएं प्रदान करना है। यहां कुछ उल्लेखनीय अम्मा ब्रांडेड योजनाएं हैं:

अम्मा उनावगम (अम्मा कैंटीन): इस योजना का उद्देश्य समाज के आर्थिक रूप से वंचित वर्गों को कम लागत, रियायती भोजन प्रदान करना है। विभिन्न स्थानों पर अम्मा कैंटीन स्थापित की गईं, जो सस्ती कीमतों पर पौष्टिक भोजन प्रदान करती हैं।

अम्मा फार्मेसीज़: इस योजना के तहत, सरकार ने सस्ती दरों पर गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराने के लिए राज्य भर में अम्मा फार्मेसीज़ की स्थापना की। फार्मेसियों का लक्ष्य आम जनता के लिए स्वास्थ्य सेवा को अधिक सुलभ और किफायती बनाना है।

अम्मा कॉल सेंटर: शिक्षित बेरोजगार युवाओं को नौकरी के अवसर प्रदान करने के लिए अम्मा कॉल सेंटर की स्थापना की गई थी। इन केंद्रों ने ग्राहक सहायता, टेली-परामर्श और डेटा प्रविष्टि सहित विभिन्न सेवाएं प्रदान कीं, जिससे हजारों व्यक्तियों को रोजगार मिला।

अम्मा जल: अम्मा जल पहल का उद्देश्य तमिलनाडु के लोगों को सुरक्षित और स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना है। इस योजना के तहत जल शोधन और बोतलबंद इकाइयाँ स्थापित की गईं, जो किफायती पैकेज्ड पेयजल की पेशकश करती हैं।

अम्मा बेबी केयर किट योजना: इस योजना का उद्देश्य नई माताओं और शिशुओं को उनकी देखभाल के लिए आवश्यक वस्तुएं प्रदान करके सहायता करना है। शिशु देखभाल किट, जिसमें कपड़े, बिस्तर और अन्य आवश्यक सामान शामिल थे, नई माताओं को वितरित किए गए।

अम्मा मैरिज हॉल: अम्मा मैरिज हॉल शादी समारोहों के लिए किफायती और अच्छी तरह से सुसज्जित स्थान प्रदान करते हैं। ये हॉल आर्थिक रूप से वंचित परिवारों के लिए शादियों के आयोजन के वित्तीय बोझ को कम करने के लिए स्थापित किए गए थे।

अम्मा सीमेंट: इस योजना का उद्देश्य लोगों की निर्माण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किफायती सीमेंट उपलब्ध कराना है। इस पहल के तहत विभिन्न निर्माण परियोजनाओं के लिए रियायती दरों पर सीमेंट उपलब्ध कराया गया।

इन अम्मा ब्रांडेड योजनाओं का उद्देश्य तमिलनाडु में जीवन की गुणवत्ता में सुधार, आवश्यक सेवाएं प्रदान करना और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देना था। वे समाज के आर्थिक रूप से वंचित वर्गों की जरूरतों को पूरा करने और बुनियादी सुविधाओं और सेवाओं तक पहुंच में सुधार करने में सहायक थे।

तमिलनाडु जल विवाद पर फैसला

जयललिता कावेरी जल विवाद में तमिलनाडु के किसानों के अधिकारों की प्रबल समर्थक थीं। वह इस मामले को कई बार सुप्रीम कोर्ट में ले गईं और अंततः 2018 में अनुकूल फैसला जीता।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने कर्नाटक को हर साल तमिलनाडु को 177.25 टीएमसीएफटी पानी जारी करने का निर्देश दिया। यह जयललिता और तमिलनाडु के किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण जीत थी।

फैसले का तमिलनाडु के लोगों ने स्वागत किया, लेकिन कर्नाटक में इसका विरोध हुआ। कर्नाटक सरकार ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने अधिकार का उल्लंघन किया है और फैसला अनुचित है।

कावेरी जल को लेकर तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच विवाद जटिल है। ऐसे कई ऐतिहासिक और राजनीतिक कारक हैं जिन्होंने इस विवाद में योगदान दिया है। हालाँकि, तमिलनाडु के लिए अनुकूल फैसला दिलाने में जयललिता की भूमिका महत्वपूर्ण थी।

यहां तमिलनाडु जल विवाद पर कुछ प्रमुख फैसले दिए गए हैं जिनमें जयललिता शामिल थीं:

2002 में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि कर्नाटक को हर साल तमिलनाडु को 205 टीएमसीएफटी पानी जारी करना चाहिए।
2007 में, सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के आदेश को संशोधित किया और कर्नाटक को हर साल तमिलनाडु को 192 टीएमसीएफटी पानी जारी करने का निर्देश दिया।
2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2007 के आदेश को बरकरार रखा और कर्नाटक को हर साल तमिलनाडु को 177.25 टीएमसीएफटी पानी जारी करने का निर्देश दिया।

2016 में जयललिता की मृत्यु तमिलनाडु के किसानों के लिए एक बड़ा झटका थी। हालाँकि, कावेरी जल विवाद में उन्होंने जो फैसला सुनाया, उससे आने वाले कई वर्षों तक किसानों को लाभ मिलता रहेगा।

एआईएडीएमके के महासचिव

जयललिता 9 फरवरी 1989 से 5 दिसंबर 2016 तक अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) की महासचिव थीं। वह पार्टी की सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाली महासचिव थीं।
राजनीति में आने से पहले वह एक लोकप्रिय अभिनेत्री थीं। वह अपने ग्लैमरस लुक और जोशीले भाषणों के लिए जानी जाती थीं। वह एक कुशल राजनीतिज्ञ भी थीं और वह जल्द ही अन्नाद्रमुक के खेमे में पहुंच गईं।

महासचिव के रूप में जयललिता तमिलनाडु की राजनीति में एक शक्तिशाली शख्सियत थीं। वह पार्टी के रोजमर्रा के कामकाज के लिए जिम्मेदार थीं और वह पार्टी की मुख्य प्रवक्ता भी थीं। वह पार्टी के सदस्यों के बीच एक लोकप्रिय शख्सियत थीं और वह अपने पीछे पार्टी को एकजुट करने में सक्षम थीं।

महासचिव के रूप में जयललिता का कार्यकाल सफलताओं और असफलताओं दोनों से भरा रहा। उन्होंने 1991, 2001, 2006 और 2011 के विधानसभा चुनावों में अन्नाद्रमुक को जीत दिलाई। हालाँकि, वह कई विवादों में भी शामिल रहीं, जिनमें भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग के आरोप भी शामिल थे।

विवादों के बावजूद जयललिता तमिलनाडु की राजनीति में एक लोकप्रिय हस्ती बनी रहीं। उन्हें एक मजबूत और सक्षम नेता के रूप में देखा जाता था जो तमिलनाडु के लोगों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध थी। 2016 में उनकी मृत्यु हो गई और उन्हें अभी भी तमिलनाडु की राजनीति में सबसे प्रभावशाली शख्सियतों में से एक के रूप में याद किया जाता है।

आय से अधिक संपत्ति मामला (2014)

आय से अधिक संपत्ति का मामला तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता से जुड़े एक कानूनी मामले को संदर्भित करता है। मामले में आरोप लगाया गया था कि जयललिता ने मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित की थी।

यह मामला 1996 में शुरू हुआ जब एक राजनेता और वकील सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा जयललिता और तीन अन्य के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई थी। मामले की शुरुआत में सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय (डीवीएसी) द्वारा जांच की गई थी और बाद में इसे केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को स्थानांतरित कर दिया गया था।

लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद, जयललिता को 27 सितंबर, 2014 को आय से अधिक संपत्ति मामले में दोषी ठहराया गया था। उन्हें एक विशेष अदालत ने दोषी पाया और भारी जुर्माने के साथ चार साल की कैद की सजा सुनाई। कोर्ट ने उनके कार्यकाल के दौरान आय से अधिक संपत्ति पाए जाने पर उन्हें जब्त करने का आदेश दिया।

हालाँकि, जयललिता ने फैसले को चुनौती दी और कर्नाटक उच्च न्यायालय में अपील दायर की। मई 2015 में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पहले की सजा को पलटते हुए उन्हें और तीन अन्य को बरी कर दिया। अदालत ने माना कि अभियोजन उचित संदेह से परे आरोपों को साबित करने में विफल रहा।

बरी किए जाने को कर्नाटक सरकार ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। फरवरी 2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति मामले में जयललिता की सजा को बरकरार रखा और कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा बरी किए जाने के फैसले को रद्द कर दिया। हालाँकि, दिसंबर 2016 में जयललिता के निधन के कारण, उनके खिलाफ मामला समाप्त हो गया, यानी उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही समाप्त हो गई।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इस मामले का तमिलनाडु में महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रभाव था और इसका जयललिता के राजनीतिक करियर और राज्य के राजनीतिक परिदृश्य पर प्रभाव पड़ा।

मुख्यमंत्री के रूप में पांचवां कार्यकाल, 2015

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के रूप में जे. जयललिता का पांचवां कार्यकाल 2015 में शुरू हुआ। मई 2016 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में, उनकी पार्टी, ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) ने शानदार जीत हासिल की, अधिकांश सीटें जीतीं और सत्ता में लौट आईं।

हालाँकि, 5 दिसंबर, 2016 को उनके असामयिक निधन के कारण जयललिता का पाँचवाँ कार्यकाल अल्पकालिक था। उनके निधन से मुख्यमंत्री के रूप में उनका पाँचवाँ कार्यकाल समाप्त हो गया और तमिलनाडु में राजनीतिक अनिश्चितता का दौर आ गया।

अपने संक्षिप्त पांचवें कार्यकाल के दौरान, जयललिता ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान लागू की गई नीतियों को आगे बढ़ाते हुए कल्याणकारी पहल, बुनियादी ढांचे के विकास और आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखा। हालाँकि, उनके दुर्भाग्यपूर्ण निधन के कारण, उनके पांचवें कार्यकाल के लिए उनकी योजनाएँ और पहल पूरी तरह से साकार नहीं हो सकीं।

जयललिता के निधन के बाद, उनके वफादार सहयोगी, ओ. पन्नीरसेल्वम ने मुख्यमंत्री की भूमिका निभाई, और बाद में, एडप्पादी के. पलानीस्वामी ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला, और 2021 में अगले राज्य विधानसभा चुनाव तक अन्नाद्रमुक सरकार का नेतृत्व किया।

मुख्यमंत्री के रूप में जयललिता के पांचवें कार्यकाल को तमिलनाडु के लोगों के कल्याण और उनकी पार्टी के शासन एजेंडे के प्रति उनकी निरंतर प्रतिबद्धता द्वारा चिह्नित किया गया था। उनके निधन से तमिलनाडु के राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण शून्य पैदा हो गया और राज्य की राजनीति में एक युग का अंत हो गया।

मुख्यमंत्री के रूप में लगातार छठा कार्यकाल

जयललिता रिकॉर्ड छह बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं। उन्होंने पहली बार 1991 में मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और 1996 तक सेवा की। फिर उन्होंने 2001, 2002, 2006, 2011 और 2015 में फिर से शपथ ली। पद पर रहते हुए 2016 में उनकी मृत्यु हो गई।
मुख्यमंत्री के रूप में उनका छठा और अंतिम कार्यकाल सबसे छोटा था, जो मई 2015 से सितंबर 2016 तक चला। वह मई 2016 में फिर से चुनी गईं, लेकिन कुछ ही महीने बाद, 5 दिसंबर 2016 को उनकी मृत्यु हो गई।

जयललिता एक विवादास्पद शख्सियत थीं, लेकिन वह लोकप्रिय भी थीं। उन्हें एक मजबूत और सक्षम नेता के रूप में देखा जाता था जो तमिलनाडु के लोगों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध थी। वह राज्य के फिल्म उद्योग के बीच भी एक लोकप्रिय हस्ती थीं।

उनकी विरासत पर आज भी बहस होती है। कुछ लोग उन्हें एक भ्रष्ट और सत्तावादी नेता के रूप में देखते हैं, जबकि अन्य उन्हें एक मजबूत और प्रभावी नेता के रूप में देखते हैं जिन्होंने तमिलनाडु के लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में मदद की।

Controversies, (विवादों , व्यक्तित्व पंथ)

जे. जयललिता का राजनीतिक करियर कई विवादों से भरा रहा, और उनमें से एक प्रमुख पहलू उनके आसपास एक व्यक्तित्व पंथ का विकास था। शब्द “व्यक्तित्व पंथ” उस घटना को संदर्भित करता है जहां एक राजनीतिक नेता का व्यक्तित्व, छवि और प्रभाव उस स्तर तक बढ़ जाता है जो सामान्य प्रशंसा या समर्थन से परे हो जाता है।

ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) की नेता और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, जयललिता की पार्टी के सदस्यों और समर्थकों के बीच मजबूत और समर्पित अनुयायी थे। उनके करिश्माई व्यक्तित्व, नेतृत्व शैली और राजनीतिक उपलब्धियों ने व्यक्तित्व पंथ के विकास में योगदान दिया।

जयललिता के व्यक्तित्व पंथ से जुड़ी कुछ विशेषताओं में शामिल हैं:

प्रतीकवाद और प्रतीकात्मकता: जयललिता की छवि और नाम का पार्टी प्रतीकों, बैनरों और पोस्टरों में व्यापक रूप से उपयोग किया गया था। उनकी तस्वीरें और तस्वीरें सार्वजनिक स्थानों, पार्टी कार्यालयों और सरकारी प्रतिष्ठानों की शोभा बढ़ाती थीं।

भक्ति और वफादारी: पार्टी के कई सदस्यों और समर्थकों ने जयललिता के प्रति उच्च स्तर की भक्ति और वफादारी प्रदर्शित की, अक्सर उन्हें "अम्मा" (तमिल में "माँ") के रूप में संदर्भित किया जाता है। उनका सम्मान किया जाता था और उन्हें एक अभिभावक व्यक्ति के रूप में देखा जाता था जो अपने अनुयायियों की चिंताओं और आकांक्षाओं को संबोधित कर सकती थी।

व्यापक अपील और लोकप्रियता: जयललिता की लोकप्रियता और व्यापक अपील राजनीतिक रैलियों और सार्वजनिक कार्यक्रमों के दौरान बड़ी भीड़ को आकर्षित करने की उनकी क्षमता में स्पष्ट थी। उनके पास एक मजबूत और समर्पित समर्थन आधार था जो उन्हें एक शक्तिशाली नेता के रूप में देखता था जो सकारात्मक बदलाव लाने में सक्षम था।

व्यक्तित्व-आधारित राजनीति: जयललिता के व्यक्तिगत करिश्मे और छवि ने अन्नाद्रमुक के चुनावी अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी नेतृत्व शैली अक्सर केंद्रीकृत निर्णय लेने और ऊपर से नीचे दृष्टिकोण की विशेषता थी।

जयललिता के व्यक्तित्व पंथ के आलोचकों ने तर्क दिया कि इसने चाटुकारिता की संस्कृति और उनकी नीतियों और कार्यों के आलोचनात्मक मूल्यांकन की कमी को बढ़ावा दिया। उन्होंने तर्क दिया कि इसने पार्टी के भीतर असंतोष को दबा दिया और वैकल्पिक नेतृत्व के विकास में बाधा उत्पन्न की।

हालाँकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि व्यक्तित्व पंथ का विकास केवल जयललिता या तमिलनाडु की राजनीति के लिए अद्वितीय नहीं है। इसी तरह की घटनाएँ अन्य राजनीतिक संदर्भों में भी देखी गई हैं।

जयललिता के व्यक्तित्व पंथ का प्रभाव और विरासत व्याख्या का विषय बनी हुई है और समाज के विभिन्न वर्गों के बीच भिन्न-भिन्न है। यह उनके राजनीतिक करियर का एक जटिल पहलू है जिस पर चर्चा और बहस होती रहती है।

1999 हत्या के प्रयास का मामला

1999 में हत्या के प्रयास का मामला तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता से जुड़ी एक घटना को संदर्भित करता है। 2001 में, जयललिता पर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) पार्टी के नेता, मुथुवेल करुणानिधि पर हमले का आदेश देने का आरोप लगाया गया था।

यह घटना 1989 में चेन्नई में एक चुनाव प्रचार के दौरान घटी थी। एक राजनीतिक रैली में भाग ले रहे करुणानिधि पर हमला किया गया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें और कई अन्य लोगों को चोटें आईं। जयललिता पर अपने सहयोगियों के साथ मिलकर हमले की साजिश रचने और उसे अंजाम देने का आरोप लगाया गया था।

जांच के बाद, जयललिता पर भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए, जिनमें हत्या का प्रयास, साजिश और गैरकानूनी सभा शामिल है। यह मामला कई वर्षों के दौरान कई कानूनी कार्यवाही और सुनवाई से गुजरा।

2001 में, चेन्नई की एक विशेष अदालत ने सबूतों के अभाव में जयललिता और मामले के अन्य आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने फैसला सुनाया कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे आरोपी के अपराध को स्थापित करने में विफल रहा।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अदालत के फैसले प्रस्तुत किए गए सबूतों और कार्यवाही के दौरान की गई कानूनी व्याख्याओं पर आधारित होते हैं। इस मामले में बरी किए जाने से संकेत मिलता है कि अदालत को जयललिता और कथित हत्या के प्रयास में शामिल अन्य लोगों को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं मिले।

हालाँकि, यह उल्लेखनीय है कि इस मामले के राजनीतिक निहितार्थ थे, क्योंकि यह जयललिता की अन्नाद्रमुक और करुणानिधि की द्रमुक के बीच तीव्र प्रतिद्वंद्विता के दौरान हुआ था। इस घटना और उसके बाद की कानूनी कार्यवाही ने उस समय तमिलनाडु में राजनीतिक कथा और गतिशीलता में योगदान दिया।

भ्रष्टाचार के मामले , 1996 रंगीन टीवी केस

1996 का रंगीन टीवी मामला 1991-1996 तक दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जे. जयललिता के खिलाफ दायर भ्रष्टाचार का मामला था। जे. जयललिता, उनकी सहयोगी वी.के. शशिकला, और उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी टी. एम. सेल्वगणपति पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने अपने कार्यालय का दुरुपयोग करते हुए उद्धृत कीमत से अधिक कीमत पर रंगीन टेलीविजन खरीदे, फिर पर्याप्त रिश्वत प्राप्त की। जयललिता, शशिकला और सात अन्य को गिरफ्तार कर लिया गया और 7 दिसंबर 1996 को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। मामला और आरोपपत्र 1998 में एम. करुणानिधि के नेतृत्व वाली द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) सरकार के दौरान दायर किया गया था।

मामले में आरोप लगाया गया कि जयललिता ने तमिलनाडु में ग्राम पंचायतों के लिए 45,000 रंगीन टेलीविजन सेटों की खरीद को प्रभावित करने के लिए मुख्यमंत्री के रूप में अपने पद का इस्तेमाल किया था। टेलीविज़न सेट ₹10.16 करोड़ (US$2,090,000) की कीमत पर खरीदे गए थे, जो बाज़ार मूल्य से काफी अधिक था। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि जयललिता और उनके सहयोगियों को आपूर्तिकर्ताओं से ₹2 करोड़ (US$348,000) की रिश्वत मिली थी।

जयललिता और उनके सहयोगियों को 2000 में एक विशेष अदालत ने सभी आरोपों से बरी कर दिया था। अदालत ने पाया कि भ्रष्टाचार के आरोपों का समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं था। 2009 में मद्रास उच्च न्यायालय ने बरी किए जाने को बरकरार रखा था।

रंगीन टीवी मामला जयललिता के खिलाफ उनके राजनीतिक करियर के दौरान दायर किए गए कई भ्रष्टाचार मामलों में से एक था। उन पर आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित करने और अपने परिवार और दोस्तों को लाभ पहुंचाने के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने का भी आरोप लगाया गया था। जयललिता को 2017 में आय से अधिक संपत्ति मामले में दोषी ठहराया गया था और उन्होंने चार साल की जेल की सजा काटी थी। उनकी मृत्यु के बाद, 2021 में उन्हें मामले में सभी आरोपों से बरी कर दिया गया।

रंगीन टीवी मामला तमिलनाडु में एक बड़ा राजनीतिक घोटाला था। इसके कारण 1996 में जयललिता सरकार गिर गई और इससे उनकी प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचा। हालाँकि, मामला अंततः असफल रहा, और जयललिता को कभी भी किसी गलत काम के लिए दोषी नहीं ठहराया गया।

1995 पालक पुत्र और विलासितापूर्ण विवाह भ्रष्टाचार

1995 के पालक पुत्र और लक्जरी विवाह भ्रष्टाचार मामले में यह आरोप शामिल था कि तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने अपने पद का इस्तेमाल अपने पालक पुत्र वीएन सुधाकरन को लाभ पहुंचाने के लिए किया था। यह मामला जुलाई 1995 में चेन्नई में आयोजित अभिनेता शिवाजी गणेशन की पोती सत्यलक्ष्मी के साथ सुधाकरन की भव्य शादी पर केंद्रित था।

अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि जयललिता ने सुधाकरन के व्यवसायों के लिए सरकारी अनुबंध हासिल करने के लिए अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल किया था, और उन्होंने शादी के भुगतान के लिए राज्य निधि का भी इस्तेमाल किया था। कथित तौर पर शादी एक भव्य समारोह थी, जिसमें 100,000 से अधिक मेहमान थे और इसका बजट ₹6.45 करोड़ (US$93 मिलियन) से अधिक था।

जयललिता पर भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया था, और उन पर शादी के लिए सरकारी धन का उपयोग करके चुनाव कानूनों का उल्लंघन करने का भी आरोप लगाया गया था। 2000 में उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया गया, लेकिन मामला विवाद का स्रोत बना रहा।

1995 का पालक पुत्र और विलासिता विवाह भ्रष्टाचार मामला उन कई भ्रष्टाचार मामलों में से एक था जिनमें जयललिता अपने राजनीतिक करियर के दौरान शामिल थीं। उन पर आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित करने और अपने परिवार और दोस्तों को लाभ पहुंचाने के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने का भी आरोप लगाया गया था। जयललिता को 2017 में आय से अधिक संपत्ति मामले में दोषी ठहराया गया था और उन्होंने चार साल की जेल की सजा काटी थी। उनकी मृत्यु के बाद, 2021 में उन्हें मामले में सभी आरोपों से बरी कर दिया गया।

1995 का पालक पुत्र और विलासिता विवाह भ्रष्टाचार मामला तमिलनाडु में एक बड़ा राजनीतिक घोटाला था। इसके कारण 1996 में जयललिता सरकार गिर गई और इससे उनकी प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचा। हालाँकि, मामला अंततः जयललिता को न्याय दिलाने में विफल रहा, और वह 2016 में अपनी मृत्यु तक तमिलनाडु की राजनीति में एक लोकप्रिय हस्ती बनी रहीं।

1998 TANSI भूमि सौदा मामला

TANSI (तमिलनाडु लघु उद्योग निगम) भूमि सौदा मामला तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले को संदर्भित करता है। यह मामला मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान जयललिता और अन्य द्वारा कम कीमत पर सरकारी स्वामित्व वाली भूमि के कथित अधिग्रहण से संबंधित है।

1996 में, तमिलनाडु सरकार ने जयललिता सहित विभिन्न व्यक्तियों और संस्थाओं द्वारा प्रमुख सरकारी भूमि के अधिग्रहण की जांच शुरू की। विचाराधीन भूमि का स्वामित्व TANSI के पास था, जो एक राज्य स्वामित्व वाली निगम है जिसका उद्देश्य छोटे उद्योगों को बढ़ावा देना है।

जांच में अधिग्रहण प्रक्रिया में अनियमितताओं का आरोप लगाया गया, जिससे पता चला कि जमीन जयललिता सहित कुछ व्यक्तियों को बाजार से कम कीमत पर बेची गई थी, जिसके परिणामस्वरूप राज्य के खजाने को नुकसान हुआ।

जांच के परिणामस्वरूप, जयललिता और मामले में शामिल अन्य लोगों के खिलाफ आरोप दायर किए गए। हालाँकि, यह मामला वर्षों तक कई कानूनी कार्यवाही और अपीलों से गुज़रा।

2001 में, जयललिता को TANSI भूमि सौदा मामले में दोषी ठहराया गया और कारावास की सजा सुनाई गई। हालाँकि, उन्होंने सजा के खिलाफ अपील की और 2003 में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पिछली सजा को पलटते हुए उन्हें बरी कर दिया। अदालत ने फैसला सुनाया कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे आरोपी के अपराध को स्थापित करने में विफल रहा।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अदालत के फैसले प्रस्तुत किए गए सबूतों और कार्यवाही के दौरान की गई कानूनी व्याख्याओं पर आधारित होते हैं। इस मामले में बरी होने से संकेत मिलता है कि अदालत को कथित TANSI भूमि सौदे की अनियमितताओं में शामिल जयललिता और अन्य को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं मिले।

भ्रष्टाचार के आरोप और कानूनी मामले जयललिता के राजनीतिक करियर का एक महत्वपूर्ण पहलू रहे हैं। जयललिता या किसी अन्य राजनीतिक व्यक्ति से जुड़े विशिष्ट भ्रष्टाचार के मामलों के बारे में सटीक और नवीनतम जानकारी प्राप्त करने के लिए विश्वसनीय स्रोतों या आधिकारिक रिकॉर्ड का संदर्भ लेना महत्वपूर्ण है।

आय से अधिक संपत्ति का मामला

आय से अधिक संपत्ति का मामला तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता से जुड़े एक हाई-प्रोफाइल भ्रष्टाचार मामले को संदर्भित करता है। मामले में आरोप लगाया गया था कि जयललिता और उनके सहयोगियों ने मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित की थी।

यह मामला 1996 में एक राजनेता और वकील सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर एक शिकायत के बाद शुरू किया गया था। जांच शुरू में सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय (डीवीएसी) द्वारा की गई थी और बाद में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को स्थानांतरित कर दी गई थी।

लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद, जयललिता को 2014 में आय से अधिक संपत्ति मामले में दोषी ठहराया गया था। विशेष अदालत ने उन्हें आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित करने का दोषी पाया और कारावास की सजा सुनाई। कारावास के साथ-साथ उस पर भारी जुर्माना भी लगाया गया। कोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति पाए जाने पर उसे जब्त करने का आदेश दिया.

हालाँकि, जयललिता ने फैसले को चुनौती दी और कर्नाटक उच्च न्यायालय में अपील दायर की। मई 2015 में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पहले की सजा को पलटते हुए उन्हें और तीन अन्य को बरी कर दिया। अदालत ने माना कि अभियोजन उचित संदेह से परे आरोपों को साबित करने में विफल रहा।

बरी किए जाने के फैसले के खिलाफ कर्नाटक सरकार ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अपील की थी। फरवरी 2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति मामले में जयललिता की सजा को बरकरार रखा और कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा बरी किए जाने के फैसले को रद्द कर दिया। हालाँकि, दिसंबर 2016 में जयललिता के निधन के कारण, उनके खिलाफ मामला समाप्त हो गया, यानी उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही समाप्त हो गई।

आय से अधिक संपत्ति मामले के महत्वपूर्ण राजनीतिक निहितार्थ थे और इसने तमिलनाडु और उसके बाहर व्यापक ध्यान आकर्षित किया। यह जयललिता के राजनीतिक करियर का एक प्रमुख अध्याय बना हुआ है और इस पर चर्चा और बहस होती रहती है।

2000 प्लेज़ेंट स्टे होटल मामला

प्लेज़ेंट स्टे होटल मामला 2000 में तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जे. जयललिता के खिलाफ दायर एक भ्रष्टाचार का मामला था। जयललिता पर 1991 से 1996 तक मुख्यमंत्री रहने के दौरान 1994 में कोडाइकनाल में एक होटल में अतिरिक्त पांच मंजिलों के निर्माण की अनुमति के रूप में अवैध छूट देने का आरोप था।

यह मामला द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) सरकार द्वारा दायर किया गया था, जिसका नेतृत्व एम. करुणानिधि ने किया था। जयललिता और उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी, वी. आर. नेदुनचेझियान और टी. एम. सेल्वगणपति पर, कोडाइकनाल में प्लेज़ेंट स्टे होटल को नियमों के विरुद्ध सात मंजिलों के निर्माण की अनुमति देने के लिए कार्यालय का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया गया था।

मामले की सुनवाई चेन्नई की एक विशेष अदालत ने की और जयललिता को आपराधिक साजिश और एक लोक सेवक द्वारा आपराधिक कदाचार के दो मामलों में दोषी ठहराया गया। उसे एक वर्ष के कठोर कारावास और ₹2,000 के जुर्माने की सजा सुनाई गई।

जयललिता ने फैसले के खिलाफ मद्रास उच्च न्यायालय में अपील की, जिसने 2001 में उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया। अदालत ने पाया कि भ्रष्टाचार के आरोपों का समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं था।

प्लेज़ेंट स्टे होटल मामला जयललिता के खिलाफ उनके राजनीतिक करियर के दौरान दर्ज किए गए कई भ्रष्टाचार के मामलों में से एक था। उन पर आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित करने और अपने परिवार और दोस्तों को लाभ पहुंचाने के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने का भी आरोप लगाया गया था। जयललिता को 2017 में आय से अधिक संपत्ति मामले में दोषी ठहराया गया था और उन्होंने चार साल की जेल की सजा काटी थी। उनकी मृत्यु के बाद, 2021 में उन्हें मामले में सभी आरोपों से बरी कर दिया गया।

प्लेज़ेंट स्टे होटल मामला तमिलनाडु का एक बड़ा राजनीतिक घोटाला था। इसके कारण 1996 में जयललिता सरकार गिर गई और इससे उनकी प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचा। हालाँकि, मामला अंततः जयललिता को न्याय दिलाने में विफल रहा, और वह 2016 में अपनी मृत्यु तक तमिलनाडु की राजनीति में एक लोकप्रिय हस्ती बनी रहीं।

बीमारी, मृत्यु और प्रतिक्रियाएँ

जे. जयललिता की बीमारी, मृत्यु और उसके बाद की प्रतिक्रियाओं का तमिलनाडु के राजनीतिक परिदृश्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। यहां एक संक्षिप्त अवलोकन दिया गया है:

बीमारी: सितंबर 2016 में, स्वास्थ्य जटिलताओं के कारण जयललिता को चेन्नई के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उसका इलाज चला और वह कई महीनों तक अस्पताल में रही। उनकी बीमारी की सटीक प्रकृति का सार्वजनिक रूप से खुलासा नहीं किया गया, जिससे अटकलें और अफवाहें उड़ीं।

मौत: मेडिकल टीम के प्रयासों के बावजूद, जयललिता का स्वास्थ्य बिगड़ गया और 5 दिसंबर, 2016 को उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु पर पूरे तमिलनाडु में सदमा और दुख हुआ और उन्होंने राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया। राज्य सरकार ने सात दिन के शोक की घोषणा की, और उनके अंतिम संस्कार के जुलूस में शोक संतप्त समर्थकों की भारी भीड़ उमड़ी।

प्रतिक्रियाएँ: जयललिता के निधन से उनके समर्थकों और पार्टी सदस्यों में शोक की लहर दौड़ गई। कई शोक मनाने वालों ने उनके नेतृत्व के प्रति गहरा दुख और प्रशंसा व्यक्त की। तमिलनाडु के भीतर और बाहर से कई नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की और संवेदना व्यक्त की। केंद्र सरकार ने सम्मान स्वरूप एक दिन का शोक घोषित किया।

राजनीतिक नतीजा: जयललिता की मृत्यु के बाद, अन्नाद्रमुक को आंतरिक उथल-पुथल और सत्ता संघर्ष के दौर का सामना करना पड़ा। जयललिता की बीमारी के दौरान मुख्यमंत्री रहे ओ. पन्नीरसेल्वम ने उनके निधन के बाद सबसे पहले मुख्यमंत्री का पद संभाला था। हालाँकि, पार्टी के भीतर एक सत्ता संघर्ष उभरा, जिसके कारण विभाजन हुआ और विभिन्न नेताओं का समर्थन करने वाले गुटों का गठन हुआ।

परंपरा: तमिलनाडु में जयललिता की विरासत मजबूत बनी हुई है. उन्हें एक करिश्माई नेता के रूप में याद किया जाता है, जिनका राज्य की राजनीति और कल्याण पहलों पर महत्वपूर्ण प्रभाव था। उनकी कल्याणकारी योजनाओं, मजबूत नेतृत्व और गरीब-समर्थक नीतियों का राज्य में स्थायी प्रभाव बना हुआ है। उनके वफादार समर्थक और पार्टी सदस्य उनकी स्मृति को बरकरार रखते हैं और तमिलनाडु के लिए उनके दृष्टिकोण की दिशा में काम करते हैं।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और जयललिता की विरासत का मूल्यांकन समाज के विभिन्न वर्गों के बीच भिन्न हो सकता है, और यहां दी गई जानकारी उनकी बीमारी, मृत्यु और उसके बाद की घटनाओं के बाद प्रतिक्रियाओं और प्रभाव का एक सामान्य अवलोकन है।

जयललिता का स्मारक

“अम्मा” के नाम से मशहूर जे. जयललिता का स्मारक उनके जीवन और विरासत के लिए एक श्रद्धांजलि है। यह स्मारक तमिलनाडु के चेन्नई में मरीना बीच पर स्थित है। इसे “पुरैची थलाइवी डॉ. जे. जयललिता मेमोरियल” के रूप में जाना जाता है और यह उनके समर्थकों और प्रशंसकों के लिए स्मरण और श्रद्धांजलि के स्थान के रूप में कार्य करता है।

स्मारक का उद्घाटन 27 जनवरी, 2018 को तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एडप्पादी के. पलानीस्वामी ने किया था। इसमें जयललिता की आदमकद कांस्य प्रतिमा है, जो उनकी समानता और प्रतिष्ठित उपस्थिति को दर्शाती है। प्रतिमा में उन्हें पारंपरिक साड़ी पहने और माइक्रोफोन पकड़े हुए उनकी विशिष्ट मुद्रा में दर्शाया गया है।

स्मारक में एक प्राकृतिक उद्यान और एक शांत वातावरण भी शामिल है, जो आगंतुकों को प्रतिबिंब और स्मरण के लिए जगह प्रदान करता है। यह एक ऐसी जगह के रूप में कार्य करता है जहां लोग जयललिता को अपना सम्मान दे सकते हैं, जिन्होंने तमिलनाडु की राजनीति और कल्याण पहल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

स्मारक उनके अनुयायियों, समर्थकों और पर्यटकों सहित आगंतुकों की एक सतत धारा को आकर्षित करता है जो उनके जीवन और योगदान के बारे में अधिक जानना चाहते हैं। यह उनके स्थायी प्रभाव और तमिलनाडु में एक प्रमुख राजनीतिक हस्ती के रूप में उनके द्वारा किए गए प्रभाव का प्रतीक है।

यह ध्यान देने योग्य है कि यद्यपि स्मारक जयललिता को समर्पित है, लेकिन इसका महत्व और धारणा अलग-अलग व्यक्तियों और राजनीतिक समूहों के बीच भिन्न हो सकती है, जो उनकी विरासत के आसपास की विविध राय और भावनाओं को दर्शाती है।

न्यायमूर्ति अरुमुगास्वामी आयोग द्वारा मौत की जांच

तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता की मृत्यु के आसपास की परिस्थितियों की जांच के लिए न्यायमूर्ति अरुमुगास्वामी जांच आयोग का गठन किया गया था। जयललिता के निधन की परिस्थितियों की पारदर्शी और स्वतंत्र जांच की मांग के बाद सितंबर 2017 में तमिलनाडु सरकार द्वारा आयोग की स्थापना की गई थी।

मद्रास उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए. अरुमुगास्वामी की अध्यक्षता वाले आयोग को जयललिता के अस्पताल में भर्ती होने, उन्हें प्राप्त चिकित्सा उपचार और उनकी मृत्यु के बाद की घटनाओं से संबंधित घटनाओं की जांच करने का काम सौंपा गया था।

आयोग ने सुनवाई की और चिकित्सा पेशेवरों, सरकारी अधिकारियों और मामले से जुड़े व्यक्तियों सहित विभिन्न स्रोतों से साक्ष्य एकत्र किए। इसमें जयललिता के निधन के कारण और परिस्थितियों का पता लगाने, उनके समर्थकों और जनता द्वारा उठाए गए सवालों को संबोधित करने की मांग की गई।

सितंबर 2021 में मेरे अंतिम ज्ञान अद्यतन तक आयोग के निष्कर्षों और सिफारिशों को सार्वजनिक नहीं किया गया है। आयोग की रिपोर्ट 2019 में तमिलनाडु सरकार को सौंपी गई थी, और यह सरकार पर निर्भर है कि वह जानकारी के साथ कैसे आगे बढ़े और क्या निष्कर्षों को सार्वजनिक किया जाए।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आयोग की जांच जयललिता की मृत्यु की परिस्थितियों की जांच करने की एक आधिकारिक प्रक्रिया है। आयोग के निष्कर्ष, एक बार उपलब्ध होने पर, उसके अस्पताल में भर्ती होने और निधन के आसपास की घटनाओं पर प्रकाश डाल सकते हैं।

लोकप्रिय संस्कृति में

जे. जयललिता का जीवन और राजनीतिक करियर लोकप्रिय संस्कृति में कई चित्रणों का विषय रहा है। यहां कुछ उल्लेखनीय उदाहरण दिए गए हैं:

फ़िल्में और टेलीविज़न: कई फ़िल्मों और टीवी शो में जयललिता के जीवन और राजनीतिक यात्रा के पहलुओं को दर्शाया गया है। कंगना रनौत अभिनीत जीवनी पर आधारित फिल्म "थलाइवी" (2021) उनके जीवन, सत्ता में आने और तमिलनाडु की राजनीति में प्रभावशाली भूमिका के इर्द-गिर्द घूमती है। इसके अतिरिक्त, विभिन्न तमिल फिल्मों में जयललिता से प्रेरित चरित्र या उनके जीवन पर आधारित कहानियाँ शामिल हैं।

वृत्तचित्र: जयललिता के बारे में वृत्तचित्र बनाए गए हैं, जो उनके व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। ऐसी ही एक डॉक्यूमेंट्री है "अम्मा एंड मी" (2018), जो फातिमा निज़ारुद्दीन द्वारा निर्देशित है, जो जयललिता और उनके अनुयायियों के बीच भावनात्मक बंधन की पड़ताल करती है।

किताबें और जीवनियाँ: जयललिता पर कई किताबें और जीवनियाँ लिखी गई हैं, जो उनके जीवन, राजनीतिक करियर और तमिलनाडु में उनके प्रभाव के बारे में बताती हैं। कुछ उल्लेखनीय कार्यों में वसंती की "अम्मा: जयललिता की जर्नी फ्रॉम मूवी स्टार टू पॉलिटिकल क्वीन" और रेनू सरन की "तमिलनाडु की आयरन लेडी: जयललिता" शामिल हैं।

श्रद्धांजलि गीत और प्रदर्शन: कई कलाकारों और संगीतकारों ने जयललिता को श्रद्धांजलि देने के लिए गीतों की रचना की है और मंचीय प्रस्तुति दी है। ये संगीतमय श्रद्धांजलि अक्सर उनके नेतृत्व, करिश्मा और अपने समर्थकों के साथ उनके संबंध का जश्न मनाते हैं।

राजनीतिक विरासत: जयललिता का प्रभाव और विरासत फिल्मों और किताबों से भी आगे तक फैली हुई है। तमिलनाडु की राजनीति में, उनकी नेतृत्व शैली, कल्याणकारी पहल और लचीलेपन का उल्लेख अक्सर राजनेताओं और पार्टी के सदस्यों द्वारा किया जाता है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि लोकप्रिय संस्कृति में जयललिता का चित्रण सटीकता और व्याख्या के मामले में भिन्न हो सकता है, और कुछ रचनात्मक स्वतंत्रता ले सकते हैं। ऐतिहासिक या राजनीतिक शख्सियतों के किसी भी चित्रण की तरह, उनके जीवन और प्रभाव की व्यापक समझ हासिल करने के लिए विश्वसनीय स्रोतों और तथ्यात्मक खातों का संदर्भ लेना उचित है।

चुनाव लड़े और पदों पर रहे

जे. जयललिता ने अपने राजनीतिक जीवन के दौरान कई चुनाव लड़े और विभिन्न पदों पर रहीं। यहां उनके द्वारा लड़े गए प्रमुख चुनावों और उनके द्वारा संभाले गए पदों का सारांश दिया गया है:

चुनाव लड़े:

1982 उपचुनाव: जयललिता ने तमिलनाडु में अंडीपट्टी विधानसभा क्षेत्र के लिए उपचुनाव लड़ा और जीतकर विधानसभा की सदस्य बनीं।

1984 लोकसभा चुनाव: जयललिता ने दक्षिण चेन्नई निर्वाचन क्षेत्र से संसदीय चुनाव लड़ा और विजयी होकर लोकसभा में सांसद बनीं।

1989 तमिलनाडु विधानसभा चुनाव: जयललिता ने बोडिनायक्कनुर निर्वाचन क्षेत्र से राज्य विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की, तमिलनाडु विधानसभा में विपक्ष की नेता बनीं।

1991 तमिलनाडु विधानसभा चुनाव: जयललिता ने बरगुर निर्वाचन क्षेत्र से राज्य विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। वह पहली बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं।

1996 तमिलनाडु विधानसभा चुनाव: जयललिता ने बरगुर निर्वाचन क्षेत्र से राज्य विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की, दूसरी बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं।

2001 तमिलनाडु विधानसभा चुनाव: जयललिता ने अंडीपट्टी निर्वाचन क्षेत्र से राज्य विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की, तीसरी बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं।

2006 तमिलनाडु विधानसभा चुनाव: जयललिता ने अंडीपट्टी निर्वाचन क्षेत्र से राज्य विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन अपने प्रतिद्वंद्वी से हार गईं।

2011 तमिलनाडु विधानसभा चुनाव: जयललिता ने श्रीरंगम निर्वाचन क्षेत्र से राज्य विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की और चौथी बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं।

2016 तमिलनाडु विधानसभा चुनाव: जयललिता ने आरके नगर निर्वाचन क्षेत्र से राज्य विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की, पांचवीं बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं।

संभाले गए पद:

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री: जयललिता छह बार (1991-1996, 2001-2006, 2011-2014, 2015-2016) तक तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के पद पर रहीं।

संसद सदस्य: जयललिता ने 1984 से 1989 तक लोकसभा में संसद सदस्य के रूप में कार्य किया।

विधान सभा सदस्य: जयललिता ने 1982 से 2016 में अपने निधन तक तमिलनाडु विधान सभा के सदस्य के रूप में कार्य किया।

ये वे प्रमुख चुनाव हैं जिनमें जयललिता ने चुनाव लड़ा और वे अपने राजनीतिक करियर के दौरान महत्वपूर्ण पदों पर रहीं। उनके नेतृत्व और प्रभाव का तमिलनाडु की राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा।

भारत की संसद में पद

जे. जयललिता ने दो कार्यकाल के लिए भारत की संसद में संसद सदस्य (सांसद) के रूप में कार्य किया। सांसद के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान उनके द्वारा संभाले गए पद यहां दिए गए हैं:

लोकसभा सदस्य: 1984 के लोकसभा चुनाव में जयललिता दक्षिण चेन्नई निर्वाचन क्षेत्र से संसद सदस्य के रूप में चुनी गईं। उन्होंने 1984 से 1989 तक संसद के निचले सदन में सांसद के रूप में कार्य किया।

लोकसभा में विपक्ष की नेता: एआईएडीएमके पार्टी के एक प्रमुख सदस्य के रूप में, जयललिता ने 1989 से 1991 तक लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद संभाला। इस दौरान, उन्होंने एआईएडीएमके का प्रतिनिधित्व किया और सत्तारूढ़ दल के खिलाफ विपक्ष का नेतृत्व किया।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जयललिता का राजनीतिक करियर मुख्य रूप से तमिलनाडु की राज्य राजनीति पर केंद्रित था, जहां उन्होंने कई बार मुख्यमंत्री के रूप में महत्वपूर्ण पद संभाले। हालाँकि, लोकसभा में एक सांसद के रूप में उनका कार्यकाल और संसद में विपक्ष के नेता के रूप में उनकी भूमिका ने उस अवधि के दौरान राष्ट्रीय राजनीति में उनके प्रभाव और प्रमुखता को दर्शाया।

तमिलनाडु विधान सभा में पद

जे.जयललिता ने अपने राजनीतिक जीवन के दौरान तमिलनाडु विधानसभा में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। यहां उनके प्रमुख पद हैं:

विधान सभा सदस्य (एमएलए): जयललिता ने कई कार्यकालों तक तमिलनाडु विधान सभा में विधायक के रूप में कार्य किया। उन्होंने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में अंडीपट्टी, बरगुर और श्रीरंगम सहित विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व किया।

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री: जयललिता छह बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं। वह 1991 से 1996, 2001 से 2006, 2011 से 2014 और 2015 से 2016 तक इस पद पर रहीं। मुख्यमंत्री के रूप में, वह राज्य सरकार की प्रमुख थीं और उनके पास महत्वपूर्ण कार्यकारी शक्तियां थीं।

विपक्ष की नेता: एक विधायक के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, ऐसे उदाहरण थे जब जयललिता ने तमिलनाडु विधानसभा में विपक्ष की नेता के रूप में कार्य किया। यह पद विधानसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता का होता है।

तमिलनाडु विधानसभा में जयललिता की स्थिति, विशेषकर मुख्यमंत्री के रूप में, ने राज्य की राजनीति और नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व और प्रभाव ने तमिलनाडु के शासन और कल्याण पहल पर स्थायी प्रभाव छोड़ा।

पुरस्कार और सम्मान

जे. जयललिता को राजनीति, फिल्मों और सार्वजनिक सेवा में उनके योगदान के लिए जीवन भर कई पुरस्कार और सम्मान मिले। यहां उन्हें दिए गए कुछ उल्लेखनीय पुरस्कार और सम्मान दिए गए हैं:

कलईमामणि पुरस्कार: 1972 में, जयललिता को सिनेमा के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों के लिए तमिलनाडु सरकार से कलईमामणि पुरस्कार मिला।

तमिलनाडु राज्य फिल्म पुरस्कार: जयललिता ने तमिल फिल्मों में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए कई तमिलनाडु राज्य फिल्म पुरस्कार जीते। उन्हें 1972, 1973, 1977 और 1980 में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला।

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार: 1979 में तमिल फिल्म "पोइक्कल कुधिराई" में उनकी भूमिका के लिए जयललिता को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

 एमजीआर-शिवाजी पुरस्कार: 2009 में, जयललिता को फिल्म उद्योग और उनके राजनीतिक करियर में उनके योगदान के लिए एमजीआर-शिवाजी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

एआईएडीएमके सोने की अंगूठी और पदक: ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) पार्टी ने पार्टी के भीतर उनकी सेवाओं और नेतृत्व की मान्यता में जयललिता को एक सोने की अंगूठी और एक पदक से सम्मानित किया।

डॉक्टरेट की उपाधियाँ: जयललिता को भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों से मानद डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त हुईं, जिनमें 1991 में मदुरै कामराज विश्वविद्यालय से साहित्य की मानद डॉक्टरेट की उपाधि और डॉ. एमजीआर से विज्ञान की मानद डॉक्टरेट की उपाधि शामिल है। 1993 में मेडिकल यूनिवर्सिटी।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह एक विस्तृत सूची नहीं है, और ऐसे अन्य पुरस्कार और सम्मान भी हो सकते हैं जो जयललिता को अपने पूरे जीवन और करियर में मिले। उन्हें मिली मान्यता राजनीति, फिल्म और सार्वजनिक सेवा के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों और योगदान को दर्शाती है।

कार्य, उपन्यास और श्रृंखला

जे. जयललिता, जो मुख्य रूप से अपने राजनीतिक करियर और फिल्म उद्योग में भागीदारी के लिए जानी जाती हैं, ने कोई उपन्यास या श्रृंखला नहीं लिखी। उनका ध्यान मुख्य रूप से राजनीति पर था, उन्होंने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया और अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) पार्टी में एक प्रमुख भूमिका निभाई।

हालाँकि, यह ध्यान देने योग्य बात है कि जयललिता तमिल फिल्म उद्योग की एक शानदार अभिनेत्री थीं और अपने करियर के दौरान कई फिल्मों में दिखाई दीं। उन्होंने कई शैलियों में अभिनय किया और कई उल्लेखनीय फिल्मों में प्रभावशाली प्रदर्शन किया।

जबकि साहित्य में जयललिता का योगदान उपन्यास या श्रृंखला के रूप में नहीं था, उन्होंने तमिलनाडु के राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और शासन, कल्याण पहल और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्रों में स्थायी योगदान दिया। उनका राजनीतिक करियर और उपलब्धियाँ अध्ययन और विश्लेषण का विषय बनी हुई हैं।

Books (पुस्तकें)

जे. जयललिता ने स्वयं कोई पुस्तक नहीं लिखी। हालाँकि, उनके जीवन, राजनीतिक करियर और तमिलनाडु की राजनीति पर प्रभाव के बारे में कई किताबें लिखी गई हैं। जयललिता पर कुछ उल्लेखनीय पुस्तकों में शामिल हैं:

वासंती द्वारा लिखित "अम्मा: जयललिता की फिल्म स्टार से राजनीतिक रानी तक की यात्रा": यह पुस्तक जयललिता के जीवन का एक व्यापक विवरण प्रदान करती है, फिल्म उद्योग में उनके शुरुआती वर्षों से लेकर एक राजनीतिक नेता के रूप में उनके उत्थान और उनके सामने आने वाली चुनौतियों तक।

रेनू सरन द्वारा "तमिलनाडु की आयरन लेडी: जयललिता": यह जीवनी जयललिता के जीवन पर प्रकाश डालती है, एक सफल फिल्म अभिनेत्री से एक शक्तिशाली राजनेता तक की उनकी यात्रा का पता लगाती है और तमिलनाडु पर उनकी नीतियों और प्रभाव की जांच करती है।

 प्रदीप रमन द्वारा लिखित "अम्मा: जयललिता की सिल्वर स्क्रीन से सिल्वर सिंहासन तक की यात्रा": यह पुस्तक जयललिता के सत्ता में आने, उनकी राजनीतिक रणनीतियों और उनके करिश्माई नेतृत्व की पड़ताल करती है, जो फिल्म उद्योग और राजनीति दोनों में उनकी अनूठी यात्रा पर प्रकाश डालती है।

वासंती द्वारा "जयललिता: ए पोर्ट्रेट": इस पुस्तक में, लेखक जयललिता के व्यक्तित्व, उनकी शासन शैली और उनके राजनीतिक करियर के दौरान उनके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जानकारी प्रदान करता है।

ये किताबें जयललिता के जीवन और विरासत पर अलग-अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं, उनकी राजनीतिक यात्रा, नेतृत्व शैली और तमिलनाडु में उनके द्वारा किए गए प्रभाव पर प्रकाश डालती हैं। वे उनके व्यक्तित्व और उनके राजनीतिक करियर की जटिलताओं की गहरी समझ प्रदान करते हैं।

लघु कथाएँ और स्तम्भ

जे. जयललिता, जो मुख्य रूप से अपने राजनीतिक करियर और फिल्म उद्योग में भागीदारी के लिए जानी जाती हैं, ने लघु कथाओं या स्तंभों का कोई उल्लेखनीय संग्रह नहीं लिखा। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के रूप में उनका ध्यान मुख्य रूप से राजनीति और शासन पर था।

हालाँकि जयललिता ने खुद छोटी कहानियाँ या कॉलम नहीं लिखे, लेकिन वह अपनी वाक्पटुता और शक्तिशाली भाषणों के लिए जानी जाती थीं। वह एक कुशल वक्ता थीं और राजनीतिक रैलियों और सार्वजनिक कार्यक्रमों सहित विभिन्न अवसरों पर प्रभावशाली भाषण देती थीं।

गौरतलब है कि जयललिता का राजनीतिक करियर और शासन में योगदान विश्लेषण और चर्चा का विषय बना हुआ है। मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान उनके भाषणों और बयानों का अक्सर विद्वानों, पत्रकारों और राजनीतिक टिप्पणीकारों द्वारा अध्ययन और संदर्भ किया जाता है।

हालाँकि, यदि आप विशेष रूप से जे. जयललिता द्वारा लिखित लघु कथाओं या स्तंभों के संग्रह की तलाश कर रहे हैं, तो यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ऐसे किसी भी कार्य का श्रेय उनके नाम पर नहीं दिया गया है।

अन्य हित, देशों का दौरा किया

जे. जयललिता ने अपने राजनीतिक जीवन के दौरान मुख्य रूप से तमिलनाडु में राज्य के मामलों और शासन पर ध्यान केंद्रित किया। हालाँकि वह व्यापक अंतर्राष्ट्रीय यात्रा में शामिल नहीं हुईं, लेकिन उन्होंने आधिकारिक उद्देश्यों और द्विपक्षीय कार्यक्रमों के लिए कुछ देशों का दौरा किया। यहां कुछ देश दिए गए हैं जहां उन्होंने दौरा किया:

संयुक्त राज्य अमेरिका: जयललिता ने 1991 में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र के 46वें महासभा सत्र में भाग लेने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका का दौरा किया। अपनी यात्रा के दौरान, उन्होंने महासभा को संबोधित किया और तमिलनाडु के मुद्दों और चिंताओं पर प्रकाश डाला।

सिंगापुर: 1995 में, जयललिता ने बुनियादी ढांचे के विकास और शहरी नियोजन पर एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए सिंगापुर का दौरा किया। अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने शहरी नियोजन और विकास के विभिन्न पहलुओं का पता लगाया।

यूनाइटेड किंगडम: जयललिता ने चिकित्सा उपचार के लिए कई बार यूनाइटेड किंगडम की यात्रा की। उन्होंने अपनी बीमारी के दौरान 2016 में लंदन के अपोलो अस्पताल में चिकित्सा देखभाल की मांग की थी।

यह ध्यान देने योग्य है कि ये जयललिता की अंतर्राष्ट्रीय यात्राओं के कुछ उल्लेखनीय उदाहरण हैं, और सूची संपूर्ण नहीं हो सकती है। उनका प्राथमिक ध्यान और जुड़ाव तमिलनाडु में था, जहां उन्होंने शासन, कल्याण पहल और राजनीतिक मामलों के लिए अपने प्रयास समर्पित किए।

अवकाश रुचियां

अपने जीवन के दौरान, जे. जयललिता की राजनीतिक और व्यावसायिक गतिविधियों के अलावा अवकाश संबंधी कई रुचियाँ थीं। जबकि उनकी सार्वजनिक छवि मुख्य रूप से उनके राजनीतिक करियर के इर्द-गिर्द घूमती थी, उनके व्यक्तिगत शौक और प्राथमिकताएँ थीं। हालाँकि, उसकी अवकाश गतिविधियों के बारे में विशिष्ट विवरण व्यापक रूप से प्रलेखित नहीं हैं। यहां कुछ सामान्य अवकाश रुचियां दी गई हैं जिनमें समान पदों पर बैठे व्यक्ति अक्सर संलग्न रहते हैं:

पढ़ना: कई राजनेताओं को पढ़ने और बौद्धिक गतिविधियों का शौक होता है। यह संभव है कि जयललिता को किताबें, समाचार पत्र पढ़ना या समसामयिक मामलों पर अपडेट रहना अच्छा लगता था।

फ़िल्में और संगीत: तमिल फ़िल्म उद्योग में एक प्रमुख अभिनेत्री के रूप में उनकी पृष्ठभूमि को देखते हुए, यह संभव है कि जयललिता को फ़िल्मों और संगीत में रुचि थी। वह अपने ख़ाली समय में फ़िल्में देखना या संगीत सुनना पसंद करती होगी।

स्वास्थ्य और योग: राजनेताओं सहित कई व्यक्तियों के लिए शारीरिक स्वास्थ्य बनाए रखना महत्वपूर्ण है। व्यायाम या योग जैसी फिटनेस गतिविधियों में संलग्न रहना शायद जयललिता की दिनचर्या का हिस्सा रहा होगा।

बागवानी: बागवानी एक आरामदायक और संतुष्टिदायक शौक हो सकता है। संभव है कि जयललिता को बागवानी या प्रकृति में समय बिताने का शौक रहा हो।

यात्रा: जबकि उनकी आधिकारिक यात्राएँ मुख्य रूप से राजनीतिक या आधिकारिक व्यस्तताओं पर केंद्रित थीं, उन्हें अवकाश के लिए यात्रा करने, विभिन्न स्थानों की खोज करने और नई संस्कृतियों का अनुभव करने में रुचि रही होगी।

सामाजिककरण और नेटवर्किंग: जयललिता संभवतः सामाजिक गतिविधियों, दोस्तों, सहकर्मियों और समर्थकों के साथ बातचीत में लगी रहती हैं। संबंध बनाना और बनाए रखना राजनीतिक जीवन का अभिन्न अंग है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये सामान्य अवकाश रुचियां हैं, और जयललिता की व्यक्तिगत प्राथमिकताओं या गतिविधियों के बारे में विशिष्ट विवरण व्यापक रूप से ज्ञात या प्रलेखित नहीं हो सकते हैं।

सामान्य प्रश्न

यहां जे. जयललिता के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले कुछ प्रश्न (एफएक्यू) दिए गए हैं:

प्रश्न: जे.जयललिता कौन थीं?
उत्तर: जे. जयललिता, जिन्हें आमतौर पर जयललिता या अम्मा के नाम से जाना जाता है, एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ और अभिनेत्री थीं। वह कई बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं और अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) पार्टी की महासचिव रहीं।

प्रश्न: जे.जयललिता का जन्म कब हुआ था?
उत्तर: जे. जयललिता का जन्म 24 फरवरी, 1948 को मेलुकोटे, मैसूर राज्य (अब कर्नाटक), भारत में हुआ था।

प्रश्न: जे. जयललिता की राजनीतिक पार्टी क्या थी?
उत्तर: जयललिता तमिलनाडु की क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) की सदस्य थीं।

प्रश्न: जयललिता की कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियाँ क्या थीं?
उत्तर: जयललिता की कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियों में कई बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करना, विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं को लागू करना और तमिलनाडु की राजनीति और शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना शामिल है।

प्रश्न: क्या था जयललिता के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला?
उत्तर: आय से अधिक संपत्ति मामले में आरोप है कि जयललिता ने अपनी आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित की है। उन्हें 2014 में दोषी ठहराया गया था लेकिन बाद में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बरी कर दिया। 2016 में उनके निधन के बाद मामला ख़त्म कर दिया गया।

प्रश्न: तमिलनाडु पर जयललिता का क्या प्रभाव था?
उत्तर: जयललिता का तमिलनाडु की राजनीति और शासन पर महत्वपूर्ण प्रभाव था। उनकी कल्याणकारी योजनाओं, गरीब-समर्थक नीतियों और करिश्माई नेतृत्व ने उन्हें जनता के बीच एक लोकप्रिय व्यक्ति बना दिया और राज्य में एक स्थायी विरासत छोड़ी।

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